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अध्यक्षको
कलम से
मुलतान डेरागाजीखान (वर्तमान पाकिस्तान) मे दि० जैन प्राचीन काल से रहते चले आ रहे हैं, जिसका इतिहास इस पुस्तक मे भली भाति बताया गया है ।
___ पाकिस्तान बनने के बाद ये सब परिवार भारत आकर जयपुर, दिल्ली, बम्बई आदि मे अपनी सुविधानुसार व्यवसाय की दृष्टि से बस गये। धीरे धीरे अपनी शक्ति के अनुसार आवासीय भवन आदि बना लिये । राजस्थान सरकार ने आदर्शनगर बसाया उसमे हम लोगो को प्लाट भी मिले और मन्दिर के लिए एक भूखण्ड भी आवटित कराया गया। जब सब लोग अपने को पुनर्स्थापन करने, रोजगार आदि जमाने मे लगे थे उसी समय धर्म साधन के लिए मन्दिर निर्माण की भी आवश्यकता उसी तरह आवश्यक समझ रहे थे।
माघ सुदी पचमी सन् 1954 ई० को श्रीमान् कवरभान जी ने समाज के सहयोग से श्रीमान् पडित चैनसुखदास जी जिनकी कि हमारे समाज पर विशेष धर्मस्नेह एव कृपा थी, के सानिध्य मे श्रीमान् सेठ गोपीचन्द जी ठोलिया के कर-कमलो द्वारा इस मन्दिर का शिलान्यास कराया गया । सर्वप्रथम समाज श्री कवरभान जी का सदैव आभारी रहेगा कि जिन्होने अथक प्रयत्न से मदिर की जमीन ली तथा धर्म साधन का बीजारोपण किया।
___ मन्दिर का निर्माण कार्य आगे बढा। समस्त मुलतान दि० जैन समाज दिल्ली, जयपुर एवम् बम्बई आदि के महानुभवो ने विषम परिस्थितियो मे भी अपनी सामर्थ्य से अधिक जो आर्थिक सहयोग दिया उसके लिए मैं उन सबको बहुत-बहुत धन्यवाद देता हूँ।
श्री आसानन्दजी वगवाणी दिल्ली का जीवन पर्यन्त बडे उत्साह के साथ तन मन धन से मन्दिर निर्माण मे सहयोग रहा इसके लिए वह श्री पल्टूसिंह जैन आचींटेक्ट को कईवार लेकर जयपुर आये । इसी प्रकार श्री घनश्याम दासजी जब तक जयपुर रहे पूर्ण सहयोग देते रहे । दिल्ली चले जाने पर भी उनका सहयोग कम नही हुआ वहाँ बैठे-बैठे भी उन्होंने इस कार्य को पूरा कराने मे पूर्ण रुचि ली तथा गुमानी चन्दजी, श्री तोलारामजी आदि ने स्वयं तो हर प्रकार का महयोग दिया ही समाज से भी अर्थ सग्रह के लिए समय-समय पर योजनाएं बनाकर धन एकत्रित कराया । इस तरह श्रीमान शिव नाथमल जी, श्री दीवान चन्दजी, श्री श्रीनिवासजी, श्री शकर लालजी आदि समस्त मुलतान दिगम्बर जैन समाज दिल्ली ने इस मन्दिर के निर्माण में सभी प्रकार का तन मन धन से जो सहयोग दिया उन मवको जितना भी धन्यवाद दिया जाय थोडा है।