Book Title: Mrutyu ki Dastak
Author(s): Baidyanath Saraswati, Ramlakhan Maurya
Publisher: D K Printworld Pvt Ltd, Nirmalkuar Bose Samarak Pratishthan

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Page 11
________________ प्रस्तावना - बैद्यनाथ सरस्वती - राम लखन मौर्य वाराणसी, 1-3 नवम्बर 2002 / निर्मल कुमार बोस प्रतिष्ठान की ओर से बोस स्मृति संगोष्ठी का आयोजन। विषय था “मृत्यु की अवधारणा : प्राचीन शास्त्र और आधुनिक ज्ञान / " विभिन्न विद्याओं के चालीस विद्वानों ने इस संगोष्ठी में भाग लिया। उनमें से कुछ ने आंग्ल भाषा में अपने विचार प्रस्तुत किये, जिन्हें अलग से "Voice of Death : Traditional Thought and Modern Science" शीर्षक के अन्तर्गत प्रकाशित किया है। प्रस्तुत अंक में हिन्दी भाषा के 27 लेखों का संकलन है। विषय प्रतिपादन मृत्यु सार्वभौमिक है। जन्म भी सार्वभौमिक है। किन्तु तात्त्विक दृष्टि से क्या ये दोनों समान हैं? अथवा मृत्यु के अपने सिद्धांत हैं और जीवन के इससे भिन्न? क्या इन दोनों का प्रारम्भ एक साथ हुआ था? अथवा एक दूसरे के बाद? ये किसमें स्थित हैं? किस प्रकार प्रकट होते हैं? मीमांसा की दृष्टि से क्या ये दोनों एक ही प्रकार के सत्य हैं? क्या ये ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति की प्रक्रिया में समान रूप से आवेष्टित हैं? जीवन और मृत्यु से परे क्या कोई तीसरा भी सत्य है? यदि हां तो क्या मनुष्य उस तीसरे सत्य का अनुभव कर सकता है? क्या सिर्फ मनुष्य को ही इसकी अनुभूति हो सकती है? अथवा अन्य प्राणियों को भी? क्या अमरत्व का बोध मरणोपरान्त ही होता है? कैसे? क्या जीवन और मृत्यु का चक्र एक दिन अपने आप सदा-सर्वदा के लिए समाप्त हो जायेगा? इस प्रकार की परिकल्पनाओं का आधार क्या है? परम्परागत संस्कृतियों ने मृत्यु से सम्बन्धित अनेक प्रकार के प्रश्न उठाये हैं। समीचीन उत्तर देने का प्रयास भी किया है। हिन्दू धर्मशास्त्र के अनुसार मृत्यु किसी पाप का परिणाम नहीं है। अपितु प्रत्येक जीव की यह एक अपरिहार्य अवस्था है। ऐसा कहा गया है कि मृत्यु प्रकाश में आप्लावित है। मृत्यु से ही जीव अमरत्व प्राप्त करता है। पार्थिव शरीर में अमरत्व प्राप्त नहीं हो सकता। मृत्यु अपने आप में अनिष्टकारी नहीं है। यह मनुष्य को देवलोक और

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