Book Title: Mook Mati
Author(s): Vidyasagar Acharya
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 5
________________ राही बनना ही तो/ हीरा बनना है, स्वयं राही शब्द ही विलोम-रूप से कह रहा हैरा"ही ही"रा तन और मन को/ तप की आग में/ तपा-तपा कर जला-जला कर / राख करना होगा तभी कहीं चेतन-आत्मा खरा उत्तरेगा। खरा शब्द भी स्वयं विलोम रूप से कह रहा हैराख बने बिना/खरा दर्शन कहाँ ? रान खरा पृष्ठ 7 इसी प्रकार की शब्द-साधना से आन्तरिक अर्थ प्रकट हुए हैं-नारी, सुता, दहिता, कुमारी, स्त्री, अबला आदि के। यहाँ इंगित किया जा सकता है कि आचार्य-कवि ने महिलाओं के प्रति आदर और आस्था के भाव प्रकट किये हैं। उनके शान्त, संयत रूप की शालीनता को सराहा है। __ 'मूक माटी' में कविता का अन्तरंग स्वरूप प्रतिबिम्बित है और साहित्य के आधारभूत सिद्धान्तों का दिग्दर्शन है। उद्धरण देने लगे तो कोई अन्त नहीं, क्योंकि वास्तय में काव्य का अधिकांश उद्धरणीय है जो कृति का अद्भुत गुण है। कवि की उक्ति है : शिल्पी के शिल्पक-साँचे में साहित्य शब्द दलता-सा ! “हित से जो युक्त - समन्वित होता है वह सहित माना है और सहित का भाव ही साहित्य बाना है, अर्थ यह हुआ कि जिसके अवलोकन से सुख का समुद्भव-सम्पादन हो सही साहित्य वही है अन्यथा, सुरभि से विरहित पुष्प-सम सुख का राहित्य है वह सार-शून्य शब्द-झुण्ड" | पृन :n-LITE आठ

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