Book Title: Mat Mimansa
Author(s): Vijaykamalsuri, Labdhivijay
Publisher: Mahavir Jain Sabha
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न्यायाम्भोनिधि-श्रीमद्विजयानंदमूरिवर्य
गुणस्तुत्यष्टकम्।
" सग्धरावृत्तम् ।"
संसारापारवाडौं भविकभवभृतां मज्जतां यानपात्रं, 1 यः प्राणिप्रार्जितानां भवभवतमसां कर्मणां सूर्यरूपः । __ नाशे खैमुष्यमाणं चरणधनवनं मोचितं येन नित्यं, श्रीआनन्दाहमूरिभवतु स भवतां नित्यमानन्दहेतुः ॥ १॥ ___ यस्य प्रज्ञानभानोः किरणसमुदायान्नाशवन्तोऽन्धकाराः,. पङ्काश्रान्त्यैव जाताः कृतकुगतिमुखा मुक्तिमार्गे प्रसन्नाः ।
सर्वे प्रज्ञाः प्रणेशुहरय इव हरेर्यस्य संवित्स्वनेन, श्रीआनन्दाह इरिभवतु स भवतां नित्यमानन्दहेतुः ॥ २॥ __नष्टो यस्मात् स मोहो भुवि दिवि नरके यस्य राज्यं प्रचण्डं, यस्य क्रोधादयस्ते प्रबल भटगणा नन्ति तद्वैरिणे। ये। __ यस्याज्ञाऽलोपि तस्मान्नसुरनरवरै राजराजोऽस्ति योऽत्र, श्रीआनन्दाहमूरिर्भवतु स भवतां नित्यमानन्दहेतुः ॥ ३ ॥

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