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(१२) कोई न पाम्यो पार ॥ कोटिकोटियुग पच रहे, पोते सरजणहार ॥५॥
॥ ढाल पांचमी॥ ॥आज धरा हुवोधुंधलो हो लाल ॥ ए देशी॥
॥साहेलडीहे ॥ मानवतीना सुणी बोलमा हो लाल, चतुरा चमकी चार ॥ साहेलमीहे,उलंना देवा नण। ॥ हो लाल ॥ एम कहे थई हुसियार ॥सा॥ मोटा बोल न बोलीयें॥हो लाल ॥१॥ नानामखथी एम ॥ सा ॥ बोलीयें एहवं वरे पडे ॥ हो लाल ॥ कहे अणघटतुं केम ॥ सा ॥ मो॥२॥ नारीनो नरागले॥हो लाल ॥स्यो सरोकहेवाय॥सा॥ कोमिटंकानी मोजमी ॥ हो लाल ॥ तो पण पहेरवी पाय ॥ सामो ॥३॥ कृष्णागर घणुं रुथमो ॥ हो लाल ॥ पण पावकमांघलाय ॥सा॥ तटनी घj विषमी हुए ॥ हो लाल ॥पण सायरमा समाय ॥सा ॥मो॥॥ विषधर हुए घणो वांकमोहो लाल॥बि लमां सीधो होय ॥सा॥ एम उखाणा घणा ॥ हो लाल ॥पार न पामे कोय ॥साामो॥५॥ पीयू केम जाये तस्यो॥हो लाल ॥अमें तो अबला बालासा॥ दीवे मारग संचरं॥हो लाल॥पीजे पाय पखाल ॥सा
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