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तो इण उद्यान ॥ हम खेले जइ सरवरे, कर यावे असमान ॥ ४ ॥ बिनुकमें फिर आउंगी, करिके मुनि आचार ॥ तव नरपति कहे खामिनी, वन वे ति विस्तार ॥ ५ ॥ वाघ सिंघ गुंजे घणा, तुमे बो स्त्री जात ॥ कहो तो या वोलाववा, सा बोली सुणि वात ॥ ६ ॥ कौन वोलावे सिंहकों, इम कहि ऊठी तेह ॥ वीणा लेई वन्नमां, यावी धरिने नेह ॥ ७ ॥ ॥ ढाल अावीशमी ॥
॥ के तट यमुनानो रे अति रवियामणो रे ॥ ए देशी ॥ के तट सरोवरनो रे अति रलियामणो रे, चि हूं दिशि जरियो गुहीर गंजीर ॥ मढकलपनां रे पूंब अ बाटती रे, उबले जल सरतीर ॥ तट सरो० ॥ १ ॥ हंस चकोर रे बग ने सारसी रे, जेणे तट करता बहु लि केलि ॥ केक उमता रे केश्क बेसता रे, के रह्या ज लथी चंचू नेलि ॥ तट० ॥ २ ॥ जंबु लिंबु रे ब कदंबना रे, तिहां रह्या लुंबित जुंबित काम || जलरा खण रे जनने कारणे रे, जाणियें कीधी एहनी वाड ॥ तट ||३|| यति रमणिक रे थानक जोइने रे, यो गण पामी मन आणंद || सांजलजो सहु कोइ रे, नृपने धूतवा रे, जे इहां रचसे रामा फंद ॥ तट० ॥ ४ ॥
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