Book Title: Mantung Raja ane Manvati Ranino Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 123
________________ (११) अमारो, बेठी बेठी काढे ॥ अ॥४॥ एकवार तो मान मूकाव्यो, वलि कहो बो दावे ॥ कहे तो परगट पाए लागुं ॥ पण कां निपट कहावे ॥ अ॥५॥ मानवती तव पियुनें पाए, लागी हसीने ताम ॥ दो गंमुक सुरनी परें बेहु, विलसे सुख अनिराम ॥ ॥६॥ हसे रमे गाए करे क्रीडा, वन उपवन जई खेले ॥ एक एकनें नयणथी अलगां, को कोईनें न मेले ॥ ॥ ७॥ नित नित नौतन वेस बनावे, शोक्यो सवि श्रवटाये ॥ पण कोनुं बल नवि चाले, अणख करे सुं थाये ॥ अ० ॥॥ राजा मानव तीने नेहें, अहनिश रहे लपटाणो ॥ जिम पंकजनें फूलें लीनो, नमर रहें लोजाणो ॥ अ० ॥ ए॥ बाल कनुं पण नाम समप्युं, मदनन्रम सुखकारी ॥ अनु क्रमे सुतने नणवा मूक्यो, सिख्यो कला अतिसारी ॥अ० ॥१०॥ मानवती जिनमंदिर सुंदर, खरचे दाम सुनावे ॥ जिनजाषित समकित आराधे, नावें नावना नावे ॥ १० ॥ ११॥ श्म दंपती विषयावें रमतां, केई दिवस गमाया ॥ एहवे धर्मघोष गुरु फिरता, पुरने परिसर आया ॥०॥ १२ ॥ मानतुंग Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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