Book Title: Mantung Raja ane Manvati Ranino Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

View full book text
Previous | Next

Page 126
________________ (१२४) सखा ॥ पाप करोतो जोश ने करजो, ते अधिकार कहा रे ॥ ज०॥ ११॥ श्म उपदेश सुणीने राजा, प्रतिबोध पाम्यो तिवार॥कर जोडी शषिनें श्म जाखे, वीनतमी अवधार रे ॥ ज० ॥ १२ ॥ मानवतीयें मुझनें स्वामी, पाय लगाड्यो केम ॥ पाल्या बोल शणे मुझसेंति, कारण कहो तस तेम रे॥ ज० ॥१३॥ माहरूं चूक्युं का न चाल्यो, ते शा माटे स्वामी ॥ ऐह कथानो आस यो मुझने, कहुं बुं हुं शिरनामी रे ॥ न० ॥१४॥ गुरु कहे तुम बिहुनो पूरवनव, सांजल कहुँ नूपाल ॥ मोदन विजयें नाषी रूडी, पिसतालीसमी ढाल रे ॥ न० ॥ १५ ॥ ॥दोहा॥ ॥ कहे गुरु जंबुद्धीपमां, देत्र नरत कहेवाय ॥ पृथ्वीनूषण पुर तिहां, तिलकसेन तिहां राय ॥१॥ धनदत्तसेठ वसे तिहां, तुमे अंगज तस बाल ॥ वम बंधव जिनदत्तजी, न्हानो ते जिनपाल ॥२॥ अनु क्रमें जिनपालने, सशुरु मिल्या सुजाण ॥ लीधो ते हना मुखथकी, मृषावाद पञ्चखाण ॥३॥ कूम न बोले वणजतां, हसतां न कहे कूड ॥ जाणे श्म जिनपाल मन, जिहां कूम तिहां धूम ॥४॥ सत्य वदे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 124 125 126 127 128 129 130 131 132