________________
(१२५) व्यापारमां, लाल उपावे नांहि ॥ बानो धर्म करे सदा, मगन रहे मन मांहि ॥५॥ वमबांधव जिन दत्त जई, बेगे नामा जोट ॥ अधिक लान देखे नहि, देखे साहमी खोट ॥ ६ ॥ तेमीने जिनपालने, पूजे जिनदत्त एम ॥ लान अधिक दूरे रह्यो, खोट गई पण केम ॥७॥
॥ ढाल बैंतालीशमी ॥ ॥ अरणिक मुनिवर चाल्या गोचरी ॥ ए देशी ॥
॥जिनदत्त नाखे रे एम जिनपालने, रे रे मुरख जाई रे॥ व्यापार एहवो रे किहां तूं शीखियो, किहां सिख्यो एद कमाई रे ॥ जि०॥१॥ए व्यापारें रे पूरं पामवं, करसो केम करी वीर रे॥ के सुं लुब्ध्यो रे परदाराथकी, ईणे गुणे थासो फकीर रे ॥ जि०॥ ॥२॥ साचुं कहे तूं रे धन किहां वावगुं, तब बो त्यो जिनपाल रे॥अव्य कुगमे रे में नथी वावगुं, खोटी करे तूं चकचाल रे ॥ जि० ॥३॥ धननी तृला रे जो जे तुऊने, तो तुमे करो रोजगार रे॥क रसो सुं तुमे घर सोवनतणा, लेई जासो साथे ए जार रे ॥ जि०॥४॥ धन ते रहेसे रे व्यापीने धरा. संगे कोई नही आवे रे ॥ आवसे साथें रे अघ ने
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org