Book Title: Mantung Raja ane Manvati Ranino Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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( १२३ )
मलि
मतां केही वार ॥ तेम सगाइ खारथ केरी, मटतां स्यो विचार रे ॥ ज० ॥ २ ॥ तात कहे कोइ मात कहे को, दास कहे को खाम ॥ थोडे थोडे वे हेंची लीधो, यतमने सुख श्राम रे ॥ ज० ॥ ३ ॥ प्रीत करो को वैर करो को, साच करो को कूम ॥ यातुं सहुने ते आखर, धूल जेली ए धूल रे ॥ ज० ॥ ४ ॥ प्राणथी वालो जाणियें जेहने, राखीये नेह निग्रंथ ॥ ते पण पूब्वा न रहे ऊजो, जातां लांबे पंथ रे ॥ ज० ॥५॥ केइ गयाने केई जासे, केई जाव णहार ॥ एणी वाटे पुण्य विणा ॥ मानवीया अपार रे ॥ ज० ॥ ६ ॥ नूपती पण रांकतणी पण, आखर एकज वाट, सार्थे यावे सुकृत कीधुं ॥ उतरतां जव घाट रे ॥ ज० ॥ ७ ॥ काचा कुंतणो स्यो न
सो, धननो केहो मद ॥ संध्याराग तणीपरें देखत, उवटी जाय सदरे ॥ ज० ॥ ८ ॥ दस दृष्टांतें मा नवकेरो, पाम्यो जनम कदाय ॥ ए अवतार करी फणी दुर्लन, चमराकरनें न्याय रे ॥ ज० ॥ ए ॥ दा न शीयल तप जाव प्रकाश्यो, चारे नेदें धर्म ॥ तेहने आदरे जे जवि प्राणी, तोडे सघलां कर्म रे ॥ ज० ॥ ॥ १० ॥ पापनें तुंबे तरसो, इहां नहि कोइ
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