Book Title: Mantung Raja ane Manvati Ranino Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
View full book text
________________
(१२) ने मानवती बेहु, पाम्या मंगलमाल ॥ मोहन विजयें रूमी नाखी, चोमालीसमी ढाल ॥ १० ॥ १३ ॥
॥ दोहा ॥ ॥ पुरजनऋषिनें वांदवा, पोहोता वन्नमकार ॥ नूपें कारण पूलिं, तेह कहे सुविचार॥१॥स्वामी तुम वनमें सुनग, श्रीधर्मघोष ऋषिराय ॥ तस पदपंकज प्रणमवा, नागरिक तिहां जाय ॥२॥नृप पण मा नवती प्रमुख, लेई निज परिवार ॥ बहु आमंबरेवांद वा, आव्यो तिहां वसुधार ॥३॥ पंचालिगम साचवी प्रणम्या ऋषिने ताम ॥ राजा मानवती प्रनृति, बेग नचिते गम ॥४॥ धर्माशीष देश करी, प्रारंने उपदे श॥ नाविक तरे संसार जिम, ते उपदेश विशेष॥॥
॥ ढाल पिस्तालीशमी॥ ॥लामुलोलेंके नहिरे मुने महि विलोवा दे॥एदेशी॥
॥ नविजन धर्म करो रे, नविजन धर्म करो ॥ पापें कां पिंड जरो रे, ए हित शीख धरो रे ॥ जेम शिवनार वरो रे, नविजन धर्म करो रे॥धर्म करो॥ ए आंकणी ॥ कूडी माया कूमी बाया ॥ कूमा बांधव लोक, कूमी जेदवी वादल बाया ॥ अंते होए फोक रे, नविजन धर्म करो ॥१॥ पंखीनी परे मेलो
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org
Page Navigation
1 ... 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132