Book Title: Mantung Raja ane Manvati Ranino Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
View full book text
________________
(१०) तो वलि खेले घात ॥३॥जो जो बुद्धि सी केलवी, मुझने लगाव्यो पाय ॥ सुतपण सहेजें सांपड्यो, थ यो शहां धर्म सखाय ॥४॥ श्म चिंती ऊव्यो' नृप ति, श्राव्यो तव दरबार ॥ हयगयरथ सणगारिया, सुजटादिक तेणिवार ॥५॥ श्म आमंबर करी घणो, मूक्यो सचिव तिणे गेह ॥ तेमी श्रावो अंतेउरे, मानवती धरि नेह ॥६॥ हर्ष महोदव बहु कस्यो, राजायें तिणिवार ॥ विरह टल्या दंपति मित्या, हुई जयजयकार ॥७॥ ॥ ढाल चुमालीशमी । मोनांजी ॥ ए देशी ॥ ॥मानतुंग ने मानवतीने, रंगरली थर सारी॥ माहोमाह वातो मार्डी, कते कपट निवार। ॥१॥ अलगा रहो ने, हारे मुने शाने बोलावो ॥ अ॥ हारे सा मानवती श्म नाषे ॥ अ॥ ए टेक ॥ प हिला लाम समावी मुऊने, हवे का बोलावो वाहा लां ॥ एकथंना घरनां जे मुखमां, शाले ने थइ ना लां ॥ अ० ॥२॥जत माहेरी शोक्यो माहें, सी पियुमा तमे राखी ॥ काढी नाखी हूंति अलगी, जेम घृतमांथी माखी ॥१०॥३॥ हसी करी तव पीउ मो बोले, गुहीरे सादे गाढे ॥ हजी लगण तुं वांक
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org
![](https://s3.us-east-2.wasabisys.com/jainqq-hq/006917970578d85a95db93cf15f1a6d3bc5f01b4425a76a9bf39daa016518799.jpg)
Page Navigation
1 ... 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132