Book Title: Mantung Raja ane Manvati Ranino Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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(११) ॥ ११॥ए अंगज राउलो, खोले ली साम॥पी॥ हवे संदेह म आणजो, जे ए जुडी वाम ॥पी० सु०॥१२॥ हुँ ढुं पगनी मोजड़ी, तमे बो शिरना मोम ॥ पी० ॥ हुँ कंटाली बावली, तुमें डो सुरतरु डोम ॥पी० ॥ सु० ॥ १३ ॥ हुं बुं रात्री जेहवी, तुमें बो दीपक साफ ॥ पी० ॥ जे अविनय कीधो हुवे, ते करजो पीयु माफ ॥ पी० ॥ १४ ॥ एक वचनने आमले, तुमथी में खेडी जोर ॥ पी० ॥ चाहो ते मुझने करो, हुंडं राउली चोर ॥ पी० ॥ सु ॥ १५ ॥ तुमे तो जाण्यो ए कामनी, केम बेत रसे मोय ॥ पी० ॥ होतां तो होये प्रनु, मत कर जो अंदोय ॥ पी० ॥ १६ ॥ मानवतीनां बोलमां, सांनलिया नूपाल ॥ पी० ॥ मोहन विजयें ए कही, तेंतालीसमी ढाल ॥ पी० ॥ सु० ॥ १७ ॥
॥दोहा॥ ॥ कंतें निज कांतातणी, सुणी वात सुविचार ॥ मुखमें घाली अंगुली, धूणे शिर तेणिवार ॥१॥ महि पति चिंते चित्तमां,अहो अहो नारिचरित्त॥मुजने णे धूत्यो खरो, कग्नि करीने चित्त ॥२॥ हवे नवि डेडं एहने, घर सरखी नहि जात ॥ जो हवे डेडं एहने,
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