Book Title: Mantung Raja ane Manvati Ranino Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 107
________________ ( १०५) हो हो विरह जंजाल रे ॥ कि० ॥ ८ ॥ केकीने पू बे तिमहिज नूघणी रे, किहां किहां बोले वाण रे ॥ राजा तव जाणे एक रीसथी रे, किहां बे योग इ रे ॥ कि० ॥ ॥ वामी मांडे फिरतो राजा वि योगियो रे, सुजट करे अरदास रे ॥ खामी शी चिंता करो एवडी रे, गांथी न गयो बे ग्रास रे ॥कि०॥१०॥ योगणीयें जो त्रोमी तुमश्री प्रीतमी रे, तो जावा यो तास रे ॥ पायमी बहोतेरी मिलसे यायने रे, सिर जो बो कांइ एम खास रे ॥ ११ ॥ यावी केश मिल से एवी तुमने रे, म करो खोटो विखास रे ॥ विलप्यां इहां तुमने यावी नही मिले रे, चालो ज्युं पोहोचो श्रा वास रे ॥ कि० ॥ १२ ॥ योगणनो स्वामी वांक स्यो काढियें रे, तुमने पण लागा षटमास रे ॥ पुरमाहें प खरिने शुद्ध करी नही रे, मलवो इबो बो हवे तास रे ॥ कि० ॥ १३ ॥ यादरना मूख्या योगी साहिबा रे, वि दर रहे केम रे ॥ सुजदें इम दीधी नृपने धा रणारे, चाल्या आागल तेम रे ॥ कि० ॥ १४ ॥ द ण क्षणमां संजारे योगणने सदा रे, मानतुंग महीपा ल रे ॥ जाखी ए मोहन विजयें हेजयी रे, ए अडत्री समी ढाल रे ॥ कि० ॥ १५ ॥ For Personal and Private Use Only Jain Educationa International www.jainelibrary.org

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