Book Title: Mantung Raja ane Manvati Ranino Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

View full book text
Previous | Next

Page 111
________________ ( १०५) मिली तव चिहुं दिसे, कूदे चपल तुरंग ॥ पाखरियां तल पोजरे, वनना जेम कुरंग ॥ २ ॥ सज्या बत्री से श्रायुधें, जरदाला फुंकार ॥ तंग कसी ताजीतणा, उपर हुवा सवार ||३|| बिहुँ सेन्या अणियें थमी, पमी नगारे गेर ॥ जाणे गयणे गाजतो, ऊन हियो घन घोर ॥४॥ ॥ ढाल चालीशमी ॥ राग सिंधु कमखानी देशी ॥ ॥ सेन बिहुं उलटी मुही सामुही, गुणियऐं राग सिंधु बजाया ॥ रज चमी अंबरे अश्व पमतालथी, तरणीना किरणने तेण बाया ॥ १ ॥ वडा योध जूटा घटा मांहे बूटे पटा, लटपटा लाल शिरथी लपेटा ॥ अटपटा ऊटपटा ऊपट करता जटा, खटपटा ते हुवा नेट नेटा ॥ वमा० ॥ २ ॥ हांक करी ताकने माक मांहे ग्रहे, जाक खगवाहीयें राक फेरे ॥ वाणीने बाण रिप्राण उपर दीये, कसम से धसमसे घालि घेरे ॥ वडा० ॥ ३ ॥ धड हडे धरणिनें नालि पिए गरुगडे, anas योध रणमांहि फिरता ॥ खमखडे ढाल का रितुंड केई रमवडे, ऊरुपडे कुंतनी आगि खिरता ॥ वमा० ॥४॥ धमधमे धिंग तिहां कायरां कमकमे, चम चमे घाव व शोधारा ॥ सुनट संग्राममां विकट थ‍ चाफले, विकट जट थाट रोषें अटारा वडा० Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132