Book Title: Mantung Raja ane Manvati Ranino Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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(१११)
॥१५॥ मानतुंगे तव मार्ग विषमा लखि, श्वशुरकुल मांही रहियो चोमासो ॥ ढाल चालीशमी मोहनें ए जणी, मानवतीनो सुणो हवे तमासो॥वमा ॥१३॥
॥ दोहा ॥
॥मानवती हरखें रहे, जिहां एकथंजो धाम ॥ गर्न स्थितिपूरण थई, प्रसव्यों बालक ताम ॥१॥ पोहोरायतें जर वीनव्यु, पट राणीने समाज ॥ मान वती एकथं नियें, बालक प्रसव्यो आज ॥२॥ एह हकीगत नूपने, लिखजो विस्तर रीत ॥ जिम नृप बालक जोश्ने, पामे मनमां प्रीत ॥३॥ राणीयो नेली मली, मूक्यो तिमहिज लेख ॥ केते दिवसें प्रे दकें नृपने दीधो देख ॥४॥ कागल वांची चित्तमां, नृप पाम्यो विश्लेष ॥ बालक केम प्रसव्यो झणे, को श्क कारण एष ॥५॥ सीख लही ससुराकने, का गल वांचत खेव ॥ नृप चिंते बालकजणी, ज जोड खयमेव ॥६॥बडे प्रयाणे चालतो, धरतो योगण चित्त ॥ पाम्यो उजायणी पुरी, मानतुंग महिपत्त ॥७॥
॥ ढाल एकतालीशमी ॥ ॥ करेलणां घम दे रे ॥ए देशी॥ ॥ पुरमा पेसारो कस्यो, नूपें निज परिवार ॥ पुर
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