Book Title: Mantung Raja ane Manvati Ranino Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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(११०)
॥५॥ हारिया सुजट जितशत्रु नृप रायना, दंत तृण ले ऊना विचारा ॥ रण रह्यो हाथ उणपतिने तदा, जीतनां दीध मोटां नगारां ॥ वमा ॥६॥ नयरी चंदेरीपति प्राण ऊगारवा, लेइ निज सैन्य ना गे बिचारो॥मानतुंग महीपने सुसर कर जोडी कहे, आजनो दीह मुफ गृहे पधारो॥वमा॥७॥ स्वामी उजेणनो सुसरने आग्रहें, नयरमां ावी दीधा उतारा ॥ अशन आरोगिया खेद उतारिया, सांसता कीध मोटा तुखारा ॥ वमा ॥ ७॥ एहवे अवसरे गगन घन उनह्यो, चपल चपला घटा मांहि चमके॥ गममगडमाट करी गाजतो दह दिसें, घमम तरु गिरि धरा धमकी धमके ॥ वमा ॥ ए ॥ बांधी काल जिसि जिहां तिहां कोरणी,धोरणीबगतणी शुन्तजावें॥ नीर दाउरमिसें काज बकने चड्या मानीय विरही नर ने बिहावे ॥ वडा ॥ १० ॥ फटकरी प्रबटें विकट घट प्रवटा प्रगट, जलधारें प्रगटे पपोटा ॥ जाणीयें नीर नूषण धस्यो धरणिये, तेहनां जगमगे रत्न मोटां ॥ वडा ॥ ११॥ दणकमांहे करी नीरमयी मेदिनी, विहंग पण नवि उडे नीम बंमी ॥ पंथिके पंथकर खेदपण परहस्यो, मेह ऊड एहवी जोर मंमी ॥ वडा
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