Book Title: Mantung Raja ane Manvati Ranino Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 116
________________ ( ११४ ) करी रहि ताम ॥५॥ पियु बेठो पर्यंकपर, दातुं बालक रूप ॥ कोपें हग वांकी करी, जाखें त्रियने नूप ॥ ६ ॥ ॥ ढाल बेतालीशमी ॥ मारगडामां जोजं जी ॥ वे प्यारो कान्ह ॥ ए देशी ॥ ॥ पियु पदमिनेि पूबे जी, बोलो मधुरी वाण ॥ हाथ लगामी मूबेजी ॥ बो० ॥ कहे साधुं इहां तुं बे जी ॥ बो० ॥ सुतनुं कारण सुं बे जी ॥ बो० ॥ हुं परदेश गयो हतो मुग्धे, किम प्रसव्यो तें बाल ॥ पियु० ॥ बो० ॥ १ ॥ पुरुष प्रवेश विशेषें जी ॥ बो० ॥ सुहणेपी नवि दिसे जी ॥ बो० ॥ गृह तल बांध्योशी से जी ॥ बो० ॥ किम धस्यो गर्न जगी शे जी ॥ बो० ॥ के इहां रहि कोई देव आराध्यो, पियु वि यो जे पुत्र ॥ पी० ॥ बो० ॥ २ ॥ जैनधर्मी कहवाइ जी ॥ बो० ॥ करणी जली कमाइ जी ॥ बो० ॥ कुलने लाज लगाइ जी ॥ बो० ॥ हुं धन्य जे तुऊ पाइ जी ॥ बो० ॥ मुऊने तें चरणें न लगाड्यो, बोली हती कि मुख ॥ पी० ॥ बो० ॥ ३ ॥ तात कवण बे एहनो जी ॥ बो० ॥ ए अंगज बे केहनो जी ॥ ॥ बो० ॥ सोंपो होवे जेहनो जी ॥ बो० ॥ गृहपण सेवो तेहनो जी ॥ बो० ॥ पूरो तमारो श्रमश्री न Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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