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(१०१)
लोकमांहे लजामणुं ॥३॥ फिट कुलहीणी हो लाल, लाज न आवी राज ॥ ते नवि जाएयु रे लुमो गनो नां रहे ॥४॥ वली नृप जाणे हो लाल, वांक न एह नो राज ॥ वांक ए माहारो रे नारी मूकी एकली ॥५॥ यौवन आवे हो लाल, विरह जगावे राज ॥ रहे केम नारी रे जोहेलें एहवें एकली॥६॥ हुं पण यहांथी हो लाल, सीपरे चालुं राज ॥ दजिय न परणे रे हुया महिना षट थया ॥ ७॥ गोत्रज पूज्या हो लाल, विण षटमासें राज ॥ दक्षिण राजा रे मुने न दिये सीखमी ॥ ॥ सी परें कीजें हो लाल, नृप न दे जावा राज ॥ मंदिरे एहवा रे नारीकेरा सूलडा ॥ ए॥ मुखे करी ग्रासी हो लाल, अहिये बुबुंदरी राज ॥ तेहने न्यायें रे राजा सोचे सोचना ॥ १० ॥ कागल पालो हो लाल, नृपें लखि दीधो राज ॥ चाट्यो सीधो रे बेई प्रेष्य उतावलो ॥ ११॥ अवंती आवी हो लाल, राणीने कागल राज ॥ आगल दीधो रे जश्ने नाखी वातमी ॥ १२ ॥ राणीचं रंजी हो लाल, कागल वांची राज ॥ पिउडो वहेलो रे हवे घरे श्रावसे ॥ १३ ॥ सोकडली ने साही हो लाल, पिन मो बांधसे राज ॥ कूटसे गाढी रे घोमाकेरे चाबखे ॥
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