________________
(५२)
खबर, जोवा श्राव्यो श्राज ॥ जो कां जोतुं होय ॥ ते कहो सारुं काज ॥ ४ ॥ प्रिया कड़े माहरी ख बर, शुं पियु थोमी लीध ॥ जे लेवा आव्या हजी, मया घणी घणी की ॥ ५ ॥ या मंदिरमां एकली, तुम विण राखे कोण ॥ ए किमदी नहि वीसरे, पियु तुम गुणना गूण ॥ ६ ॥
॥ ढाल वीशमी ॥
॥ जीणा मारुजीनी करदलकी ॥ करहलडी केसर रो कूपो म्हाने आलोहो राज ॥ ए देशी ॥ ॥ भूपति कहे सु जामिनी, एकलमां मंदिरमें नि गमियें कम करी दीदा ॥ हो राज॥ वांक न जाणीश माहरो, धुरथी कां नवि राखी पाधरी ताहरी जीहा ॥ हो राज ॥ १ ॥ अमृत विष इण जीनमें, अनरस पण इणी जीजें बहुली प्रीत लगाडे ॥ होराज ॥ को कि लवाणी सहु सुणे, वायसनी सुणी वाणी पथर नाखी उमाडे ॥ हो राज ॥ २ ॥ ति विचारयो न जाषिये, जो कालवे तें जाख्युं तो ए फल तुं पामी ॥ हो राज ॥ याज पढे पण एहवी, वदेती वर्हेती वातो करसो मा जिरामी ॥ हो राज ॥ ३ ॥ बोली मान वती तदा, पीउमा में घटतां वायक कां नयी
For Personal and Private Use Only
Jain Educationa International
www.jainelibrary.org