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मूको कंधथी रे, रीस चढावो का आम रे ॥योगण ॥ बटकी न दीजे बेह ॥ हुंडं पगनी रेह रे ॥ योगण ॥ मानो वीनति एह रे ॥ योगण ॥बटकी न दीजे बेह ॥१॥ ए टेक ॥ सरम नजर मेला तणी रे, श्रावती सुं नथी चित्त ॥ ह न द्यो तुमे मुफ नणी रे, हुं श्म जाणतो नित्त रे ॥ यो ॥ ॥२॥ माहरा हृदय मांहे वसी रे, मन हरी जाबो एम ॥ किहां रह्यु तुम योगीपणुं रे, ए पातिक बूटसो केम रे ॥ यो॥ ब॥३॥ जासो जो गोद बिगावतां रे, तो अम बल स्यो साम ॥ करि केम रहे कांने ग्रह्यो रे, तेम तुमे अनिराम रे॥ यो ॥ बन॥४॥ माया लगामी कारमीरे, मुऊथी तमे महाराय ॥ पण कदीही योगी सरां रे, आपणना नवि थाय रे ॥ यो॥ ॥५॥ परदेशीथी प्रीतमी रे, करवी तेहिज कूम ॥ नेह नि वाहि नवि सकेरे, जाए विहंग परे ऊम रे ॥ यो॥ उ॥६॥ते में नयणे पारख्युं रे, तुमथी दीगो आज ॥ जो हुं एहवं जाणतो रे, तो न करत नेह समाज रे ॥ यो ॥ ॥ ७॥ पण ते हवे सुं सोचवु रे, होए होवणहार ॥ दौरकरम कीधा पडे रे. पूजे सुं तिथी वार रे ॥ यो ॥ ॥॥ जे जीने तुमें कह्यो हतो
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