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(६७)
तेणें राजान, मुछने तेडवा मूक्यो प्रधान ॥ म ॥ तिहां जश् पर| कन्या तेह, वाततणुं जे कारण एह ॥ म ॥ ए॥ योगण त्रटकी बोली वाण, रे रे अध म क्या बोट्या वाण ॥ म०॥ क्या तें दियाथा कोल संजार, दिन थोरे में क्यों दिया बिसार ॥ म॥ ॥ १० ॥ न सक्या तू तो वचन निवाह, तो हमकुं तें राखे कांह ॥ म ॥ देश बचन युं चूके पुमान, ताको जीयो अजीयो जान ॥ मम् ॥ ११ ॥ जानी बे तेरी कूमी प्रीत, अब तेरे पर क्या परतीत ॥ म॥ तुऊसे तो नीका मंमलीक, जो पोतेसें रहत नजीक ॥ म ॥ १२ ॥ धिग धिग धिग तेरा अवतार, किस सुले घड्या तोहें किरतार ॥ म ॥ तुमसे तो नले हम योगीस, वचने तुझपे रहे निशदीस ॥ म॥ ॥ १३॥ हम नि चलेंगे तीरथ काज, क्या योगीकुं संजारना साज ॥ म॥ एक दर मुंदे खुले दर लाख, ए योगी मुखकी हे नाख ॥ १४ ॥ तोसें क्या देणी हे राय, यो कलु दियो होय तो बताय ॥ म ॥ अहि अरि योगी न किनके मित्त, तूं राजा तो हम हे अतीत ॥ म० ॥ १५ ॥ तूं तेरे घर करे नित राज, अब हमसे क्या तेरा काज ॥ म ॥ श्म योगणना
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