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(३१) से मंत्रप्रनाव हो ॥ जेम रहे बेसी करंगमे, तिम थई रह्यो नरराव हो ॥ नृप ॥ २ ॥ को दृग वां की करी, रमणीथी थयो रूप हो ॥प्रीतम मन चोरी करी ॥ वाली बेगे पूछ हो ॥ नृप० ॥३॥ मान वती चित चिंतवे, कंत न मेले कां मीट हो ॥ रसमां अनरस कां करे, फेरी कां बेठो पीठ हो ॥नृप०॥४॥ शुं कांई मुजमां वालहे, दीगे अवगुण कोय हो ॥ हजी नथी मुझशुं बोलतो, सहि शहां कारण होय हो॥नृपः॥५॥आजथी मांड्यो एहवो, आगल केम निवहाय हो ॥ प्रथम ज कवले मदिका, ते नोजन केम खवाय हो ॥ नृप० ॥ ६ ॥ करजोमी कहे कामिनी, अहो अहो प्राण आधार हो ॥ किम तुमे श्रामणदमणा, दिसोडो केणे प्रकार हो ॥ नृप० ॥७॥ हुं हुं कनमी राउली, मुऊ ऊपर स्यो रोष हो ॥ वाड जखे जो चीनमां, तो केहने दीजे दोष हो॥ नृप॥७॥
वी वलगी हुँ पालवे, ते किम अलगी थाय हो ॥ तेहने ठेली नाखतां, परमेश्वर उहवाय हो ॥ नृप०॥ ॥ ए॥ बोलो नाह मयाकरो, कहुं बुं विबगवी गोद हो ॥ धीरज ढुं न धरी सकू, उपजावो आमोद हो॥ नृप०॥ १० ॥ कटकीसी कीमी ऊपरे, तृण ऊपर स्यो
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