Book Title: Manorama Kaha
Author(s): Vardhmansuri, Rupendrakumar Pagariya
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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मणोरमा-कहा
निरुद्ध-रविकर-प्पसरे समरंगणे, जयसिरीए सहरिसं समालिगिओ, पडिपुण्ण-सुंदर-सयल-सरीरावयवतया अहरिय-मयरद्धयरूवविहवो नरकेसरी नाम राया। बंधुयण-कुमुथचंदो, सूरो रिउतिमिर-नियर-निद्दलणो । लंकाहिवो व्व अइसाहसण, कण्णो व्व दाणेण ॥६३॥ पणईयण-कप्परुक्खो,दसदिसि-पसरंत-निम्मल-पयावो । तरुणी-यण-मण-माणस-सरम्मि हंसो व्व जो वसइ ।६४। सण्णाय-पयापालण-पसरिय-जस-भरिय-सयल-भुवणयलो। नारायणो व्व लच्छीए जो समालिगिओ निच्चं ।६५॥
तस्स य राइणो सयलतेउरप्पहाणा, निज्जिय सयल-रमणी-यण-रूव-सोहग्गाइ-गुण-गण-साहीण-नरवइ-सयल-सरीरत्तणेण परितुटु-पसुवइ-विदिण्ण-सरीरद्ध-भागं ललियमवि उवहसंती, सुसरीर-सरूव-निय-पइ-गव्व-गम्विया अणंगरोहिणी रइमवि तिणमिव गणयंती सकलंक-सहयर-समागम-दोस-दुसि कोमुइमवि न किपि मण्णयंती, कारणं रइए, मंदिरं परमपीइए, सरीरमेत्तेणं चेव भिण्ण-बीयमिव हिययं नरवइणो पियंगुमंजरी महादेवी। भुवणच्छेरयभूयं रूवमिमीए मनोरम दठ्ठ। विहिणो वि विम्हओ, माणसम्मि निथए समुप्पन्नो॥६६।। अहह पडिबिंब-रहिआ, भयतट्ठकुरंगलोयणा एसा । कह निम्मिया मए वि हु, न जाणिमो वत्थु-परमत्थं ॥६७।। उत्तत्त-कणय-वन्ना, संसार-सुहाण कारणं परमं । सुविणीया सुकुलीणा, पइ-अणुकूला सुसीला य ।।६।। कल-कोइल-महुरसरा, निय-बंधव-कुमुयसंड-ससिजोण्हा। रज्ज पि तीए वज्ज, मण्णइ राया किमण्णेण ।।६९।।
सो य राया तीए सह सिणेह-सरिस-सयलिंदियाणंद-दायगं, बहुजण-नयण-मणहरं, नीसेसविउस-जण-पसंसणिज्जं, जहा समीहिय-संपज्जत-सयल-विसय-विसरं, विसयसुहमणुभवंतो, कयाइ महुरवीणा-विणोएण, कयाइ बत्तीस-बद्ध-नाडयरस-पेच्छणेण, कयाइ सिंगार-रसिय-सुकवि-कहा-पहेलियावियारेण, कयाइ देव-गुरु-चलणाराहणेण, कयाइ दीणानाहकिविण-दुत्थिय-विहल-जणुद्धरणेण, कयाइ रज्जकज्ज-चिंतणेण कालं गमेइ । एवं च जंति दिथहा, परोप्परं ताण नेहजुत्ताण । बहुपुण्ण-पावणिज्जं विसय-सुहं अणुहवंताण ।।७०।।
अण्णया वासभुवणमुवगएण राइणा चइऊण परमपल्लंक, मोत्तूण भद्दासणाईणि पवरासणाणि, सुद्ध-धरणीयलोवविदा. विसाय-विस-वेग-विसंठल-सयल-करण-वावारा, वारिय-वीणा-वेण-गंधब्व-नद्र-पय-निय-परियणा, अणवरय-पयथोरंसु-विरइय-हारावली, परिचत्त-वरवत्थाहरण-विलेवणा कुसूम-दाम-सूण्ण-केसपासा, तंबोल-परिहार-विरंग-सूक्काहरा, निरंतर-विमुक्क-दीहण्ह-नीसासा, रवि-कर-तविय-विजल-धरणीयल-गयबाल-सफरी व दुक्खभरतावतावियंगी, हिमदड़ढकमलिणी व विच्छाय-सयल-सरीरावयवा, चिरपरिचियमवि सहीअणं अपरिचियमिव मण्णमाणी, वाम-करयल-पल्लत्थियमहा, विमण-दुम्मणा, अट्टज्झाणोवगया, अणायक्खणीयं किंपि दसंतरमणुहंवती दिट्ठा देवी पियंगुमंजरी, संभासिया य सायरेण राइणा-“देवि ! कि ते सरीरे बाहाकारणं ? कि तक्खणुप्पण्णण केणावि वाहिणा वियारो दरिसिओ? कि केणावि मए वि अक्खंडियपुव्वा आणा तुह खंडिया? किं ण विणीओ परियणो? कस्स वा तुह विप्पियं कुणंतस्स सुमरियं कयंतेण? कहेहि, जइ अकहणीयं न होइ।" एवं पुच्छंतस्स वि नरवइणो न किंपि जंपियं पियंगमंजरीए। केवलं वाम-चलणंगुट्ठएण धरणीयलं विलिहमाणा अहोमुही ठिया। तओ वयणमेत्तेण अकयपडिवत्ती विलक्खो ससंभमो य पासट्ठिय-. परियण-मुहाणि अवलोइउं पवत्तो राया। .
.. एत्थंतरे परियणमज्झाओ समागंतूण चंदलेहाभिहाणाए पहाण-दास-चेडीए वामकरण गहिऊण वामचरणं दाहिणकरेण उन्नामिऊण मुह-कमलं ससिनेहं सोवालंभं च भणिया पियंगुमंजरी-“देविपियंगुमंजरि, जुत्तं णु एवं, सरिसं णु एवं सरय-निसायर-निम्मल-रायवंस-पसूयाणं, उभयकुल-विसुद्धाणं, विणयाइ-गुणगणाहरण-विभूसिय-सरीराणं, पइ-पयकमल-समाराहण-महुयरीणं, महुमास-लच्छीणं व सयलजण-मणाणंदकारिणीणं, तुम्हारिसाणं, जण्णं देवय-गुरुभूए संसारसह-सहारस-रयणायरे, रमणी-यण-पाणप्पिए पिययमे वि घरमागए अणालवणाइणा परिभवकरणं?" तीए भणियं-"हला !
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