Book Title: Malarohan Author(s): Gyanand Swami Publisher: Bramhanand Ashram View full book textPage 8
________________ तारण पंथ आराधना करते हुए मुक्तिमार्ग पर चलने का प्रयास कर रहे हैं तथा सत्यधर्म अध्यात्म दर्शन का प्रचार-प्रसार निस्वार्थ भाव से कर रहे हैं। श्री संघ में प्रमुख-अध्यात्म रत्न बा.ब्र. श्री बसंत जी, ब्र. श्री स्वरूपानंद जी, युवारत्न बा.ब्र. आत्मानंद जी, श्रद्धेय ब्र. सहजानंद जी, ब्र. शान्तानंद जी, विदुषी बा.ब्र. सरला जी, बा.ब्र. नंद श्री बहिन, ब्र. विमल श्री, ब्र. किरण बहिन आदि सभी साधक पूरे देश में धर्म साधना, धर्म प्रभावना में रत हैं। आपके जीवन में अध्यात्म दर्शन का प्रादुर्भाव हो, आप इस ग्रंथ का निष्पक्ष भाव से स्वाध्याय करें तथा अपने अंतर में देखें कि हमें कैसी अनुभूति हुई और हमारा वर्तमान जीवन कैसा है। सम्यग्दर्शन की पात्रता के पांच सूत्र हैं १. वर्तमान जीवन का विवेक २. पाप पुण्य का निर्णय ३. कषाय की मंदता ४. धर्म की रूचि ५. सदाचारी जीवन, आपके जीवन में अध्यात्म दर्शन की ज्योति प्रगट हो इसी पवित्र भावना के साथ परमपूज्य प्रात: स्मरणीय श्री गुरू जिन तारण तरण मंडलाचार्य जी 'महाराज-सोलहवीं शताब्दी के सर्वाधिक चर्चित आध्यात्मिक क्रांतिकारी महापुरूष हुए हैं। उस युग में जिनेन्द्र कथित जिन धर्म (ज्ञानमार्ग) की अभूतपूर्व धर्म प्रभावना का श्रेय पूज्य तारण स्वामी जी को ही है। उन्होंने उस समय धर्म के नाम पर होने वाले मिथ्यात्व आडम्बर पाखण्ड वाद का डटकर मुकाबला करते हुए-४३ लाख जैन-अजैन लोगों को सत्य धर्म मुक्तिमार्ग (तारण पंथ) में दीक्षित किया और जिन शासन, जैन धर्म की महती प्रभावना की, उनके उपकारों को जैन समाज युगों-युगों तक नहीं भुला सकती। वीतराग निर्ग्रन्थ दिगम्बर भावलिंगी साधु के रूप में अपने आत्मकल्याण के साथ-साथ शुद्ध अध्यात्म के प्रचार-प्रसार में अपना जीवन समर्पण कर दिया। अध्यात्म की साधना के गूढ रहस्यों का सांगोपांग विवेचन उनकी वाणी की महत्वपूर्ण विशेषता थी। उनके द्वारा प्रतिपादित स्वानुभूतियुत चौदह ग्रंथ मुक्ति मार्ग के पथिक मुमुक्षु जीवों को युगों-युगों तक प्रेरणा देते रहेंगे। श्री गुरू महाराज के १४ ग्रंथों में विचारमत का पहला ग्रंथ श्री मालारोहण जी, इसकी अध्यात्म दर्शन टीका आत्म निष्ठ साधक पूज्य श्री स्वामी ज्ञानानंद जी महाराज ने अपनी ज्ञान ध्यान मौन साधना में रहते हए सम्यग्दर्शन अध्यात्म दर्शन का बड़ा गंभीर रहस्य प्रगट किया है। सम्यग्दर्शन कब, कैसे, किसे, कैसा होता है? यह श्री गुरू महाराज द्वारा विरचित इस मालारोहण की टीका में हार्द निकालकर रख दिया है। अध्यात्म की चर्चा करना आज सामान्य बात हो गई है परन्तु स्वयं का जीवन कैसा है, अपने को अध्यात्म दर्शन हुआ या नहीं- इसका कोई निर्णय नहीं करता जबकि यह इतनी महत्वपूर्ण निधि है कि इसके बगैर मनुष्य भव की कोई सार्थकता ही नहीं है और न संयम साधना का कोई महत्व है। पूज्य श्री के सानिध्य में श्री संघ के सभी साधक अध्यात्म दर्शन की बीना दि. २०.२.९९ बा...ऊषा जैन एम.ए. संयोजिका - तारण तरण श्री संघ पर पर्याय का भेद रहा नहीं, त्रिकाली धुव सत्ता है। एक अखण्ड सदा अविनाशी, सच्चिदानन्द अलबत्ता है। कर्मोदय जन्य मोह राग का, हुआ जहाँ अवसान है। वीतरागता आना ही यह, मुक्ति का सोपान है ॥ 13Page Navigation
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