Book Title: Malarohan
Author(s): Gyanand Swami
Publisher: Bramhanand Ashram

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Page 7
________________ यह सम्यग्दर्शन महारत्न समस्त लोक का आभूषण है, और मोक्ष होने पर्यन्त आत्मा को कल्याण देने में चतुर है। अन्य गुणों से हीन भी सम्यग्दृष्टि सर्वमान्य है, क्या बिना शान पर चढ़ा रत्न शोभा को प्राप्त नहीं होता? सम्यग्दर्शन सब रत्नों में महारत्न है, सब योगों में उत्तम योग है, सब ऋद्धियों में महा ऋद्धि है, अधिक क्या ? सम्यक्त्व सर्व सिद्धियों का करने वाला है। अपार संसार समुद्र तारने वाला और जिसमें विपदाओं को स्थान नहीं, ऐसा यह सम्यक् दर्शन जिसने अपने वश किया है, उस पुरुष ने कोई अलभ्य संपदा ही वश करी है । जब जीव सम्यक्दर्शन को प्राप्त हो जाता है तब परम सुखी हो जाता है, और जब तक उसे प्राप्त नहीं करता तब तक दुःखी बना रहता है। सम्यक्दर्शन सर्व दुःखों का नाश करने वाला है, इसलिए इसमें प्रमादी मत बनो । हे भव्य जीवो ! तुम सम्यक्दर्शन रूपी अमृत का पान करो क्योंकि यह अतुल सुख निधान है, समस्त कल्याणों का बीज है, संसार सागर से तरने को जहाज है। भव्य जीव ही इसका पात्र है, पाप वृक्ष काटने के लिए कुठार है, पुण्य तीर्थों में प्रधान है तथा विपक्षी जो मिथ्यादर्शन उसको जीतने वाला है। ऐसे महा महिमा मय सम्यक्दर्शन का स्वरूप इस मालारोहण जी ग्रंथ में पूज्य गुरू तारण तरण मंडलाचार्य जी महाराज ने प्रगट किया है। इस ग्रंथ की ३२ गाथाओं में धर्म, सम्यक् दर्शन, साधना, ज्ञानी साधक की चर्या, आत्मानुभूति का प्रमाण, धर्म की महिमा आदि अनेक विषयों का अभूतपूर्व विश्लेषण प्राप्त होता है । प्रस्तुत श्री मालारोहण ग्रंथ की " अध्यात्म दर्शन' टीका दशम प्रतिमा धारी आत्म निष्ठ साधक पूज्य श्री ज्ञानानंद जी महाराज ने की है। श्री गुरू महाराज की गाथाओं का इस टीका में पूरा रहस्य और सार स्पष्ट हुआ है। इसमें साधक की अंतर्बाह्य साधना और मार्ग में आने वाली बाधायें तथा उनसे छूटने का उपाय भी बताया गया है। विशेषता यह है कि हर गाथा का एक दूसरी गाथा से जो संबंध है वह स्पष्ट करके पूज्य श्री ने इस टीका को पूरी एक श्रृंखला का रूप प्रदान कर दिया है। अभी तक की पूर्व में हुई टीकाओं में इस टीका की अपनी एक अनूठी ही विशेषता है जो आप स्वयं स्वाध्याय करके अनुभव करेंगे। गाथा का शब्दार्थ, भावार्थ, प्रश्नोत्तर, सूत्र, गाथा के अभिप्राय को पूर्णतया स्पष्ट करते हैं। तारण समाज को इस प्रकार के टीका ग्रंथों का प्राप्त होना २१वीं 11 सदी का आध्यात्मिक उपहार, पूज्य श्री का भव्यजीवों पर उपकार, और एक महान उपलब्धि है। पूज्य श्री महाराज जी ने अपनी विगत तीस वर्षों की आत्म साधना से अनेक अनुभव के मोती प्राप्त किए हैं, जिनके दर्शन उनके द्वारा की गई इन टीकाओं में होते हैं। पूज्य श्री द्वारा की गई तीन बत्तीसी की टीकाओं का प्रकाशन पूर्णता की ओर है। तीन बत्तीसी में श्री मालारोहण की "अध्यात्म दर्शन टीका', श्री पंडित पूजा की " अध्यात्म सूर्य टीका' और श्री कमल बत्तीसी की "अध्यात्म कमल टीका" की गई है। यह तीनों ग्रंथ क्रमशः सम्यक्दर्शन, सम्यक्ज्ञान और सम्यक्चारित्र के प्रतिपादक ग्रंथ हैं। यह रत्नत्रय की एकता ही मोक्षमार्ग है तथा रत्नत्रय की पूर्णता मोक्ष है। विशिष्ट अपूर्व ज्ञान मार्ग, अध्यात्म मार्ग इन टीका ग्रंथों में आगम, अध्यात्म और साधना की दृष्टि से प्रस्फुटित हुआ है, जो जन-जन के लिए उपयोगी और कल्याणकारी है। निष्पक्ष भाव से इनका स्वाध्याय कर आप भी ज्ञानानुभूति के सागर में डुबकी लगायें और प्राप्त करें अपने अनमोल स्वसंवेदन गम्य रत्नत्रय सम्यक् दर्शन, ज्ञान, चारित्र को, यही इन ग्रंथों का अभिप्राय और सार सिद्धांत है। सभी भव्य जीव, सम्यक् दर्शन सत्य धर्म की प्रकाशक इस मालारोहण जी की अध्यात्म दर्शन टीका से अपने जीवन को आध्यात्मिक दर्शन ज्ञान मय बनायें और आत्म कल्याण का पथ प्रशस्त करें, यही मंगल भावना है। ब्रह्मानंद आश्रम पिपरिया दिनांक २०.३.९९ ब्र. बसंत " * संकल्प * अध्यात्म ही संसार के क्लेशोदधि का तीर है। चलता रहूं इस मार्ग पर मिट जायेगी भव पीर है ॥ ज्ञानी बनूं ध्यानी बनूं अरू, शुद्ध संयम तप धरूं । व्यवहार - निश्चय से समन्वित, मुक्ति पथ पर आचलं ॥ - 12

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