Book Title: Malarohan
Author(s): Gyanand Swami
Publisher: Bramhanand Ashram

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Page 133
________________ 243] [244 भजन आओ हम सब मिलकर गायें, गुरूवाणी की गाथायें / है अनन्त उपकार गुरू का, किस विधि उसे चुका पायें / / वन्दे तारणम् जय जय वन्दे तारणम् / / चौदह ग्रंथ महासागर हैं, स्वानुभूति से भरे हुए। उन्हें समझना लक्ष्य हमारा, हम भक्ति से भरे हुए। गुरू वाणी का आश्रय लेकर, हम शुद्धातम को ध्यायें, है अनन्त ........ कैसा विषम समय आया था, जब गुरूवर ने जन्म लिया। आडम्बर के तूफानों ने, सत्य धर्म को भुला दिया / तब गुरूवर ने दीप जलाया, जिससे जीव संभल जायें, है अनन्त ........ अमृतमय गुरू की वाणी है, हम सब अमृत पान करें। जन्म जरा भव रोग निवारें, सदा धर्म का ध्यान धरें / / हम अरिहंत सिद्ध बन जायें, यही भावना नित भायें, है अनन्त ........ शुद्ध स्वभाव धर्म है अपना, पहले यही समझना है। क्रियाकाण्ड में धर्म नहीं है, ब्रह्मानंद में रहना है।। जागो जागो हे जग जीवो, सत्य सभी को बतलायें, है अनन्त........ जिनवाणी स्तुति जिनवाणी को नमन करो, यह वाणी है भगवान की। वंदे तारणम् जय जय वंदे तारणम् / / स्यादवाद की धारा बहती, अनेकांत की माता है, मद् मिथ्यात्व कषायें गलतीं, राग द्वेष गल जाता है। पढ़ने से है ज्ञान जागता, पालन से मुक्ति मिलती , जड़ चेतन का ज्ञान हो इससे, कर्मों की शक्ति हिलती। इस वाणी का मनन करो, यह वाणी है कल्याण की // 1 // वंदे तारणम्....... इसके पूत-सपूत अनेकों, कुन्द-कुन्द गुरू तारण हैं, खुद भी तरे अनेकों तारे, तरने वालों के कारण हैं। महावीर की वाणी है, गुरू गौतम ने इसको धारी, सत्य धर्म का पाठ पढ़ाती, भव्यों की है हितकारी / / सब मिलकर के नमन करो,यह वाणी केवल ज्ञान की॥२॥ वंदे तारणम्...... ---*---*---*--- __ आरती ॐ जय आतम देवा, प्रभु शुद्धातम देवा / तुम्हरे मनन करे से निशदिन, मिटते दुःख छेवा ।।टेक।। अगम अगोचर परम ब्रम्ह तुम, शिवपुर के वासी / शुद्ध-बुद्ध हो नित्य निरंजन, शाश्वत अविनाशी // 1 // ॐ जय........ विष्णु बुद्ध, महावीर प्रभु तुम, रत्नत्रय धारी / वीतराग सर्वज्ञ हितंकर, जग के सुखकारी / / 2 / / ॐ जय........ ज्ञानानंद स्वभावी हो तुम, निर्विकल्प ज्ञाता / तारण-तरण जिनेश्वर, परमानंद दाता // 3 // ॐ जय........ जिनेन्द्र परमात्मा द्वारा कथित यह मुक्ति का श्रेष्ठ शुद्धमार्ग व्यवहार निश्चय से शाश्वत अनेकान्तमयी है, जो भव्य जीव इसका आराधन करते हैं, वे अवश्य आत्मा से परमात्मा होते हैं, इसमें कोई संशय नहीं है। 8 इति

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