________________
साधक जीवन
श्रमण वर्धनान ने क्षत्रिय कुंडपुर पर अठारा लोगां सूमोहममता नी री। वणा कयो-म्है तो अवै श्रमण हैं। गज पर देसी सीमा सूऊपर । थां लोग अवै म्हारे साथ कठाताई रेवोला। वर्धमान री वाणी सुरण में लोग आप आपरो गैलो पकड़ियो। श्रमण महावीर भी सवमूविदा लैर चालिया एकला वनकांनी।
महावीर मन मांय निश्चय करियो के जठा ताई म्हनै ज्ञान री पूरी प्रोळखाण अर प्राप्ति नी हुवैला हूँ सरीर री ममता छोड'र जनभाव सू साधना में लीन रऊला । देव, मिनल पर तिर्थच जीवा झूजित्ता भी उपसर्ग (कप्ट) मिलेला, वान समभाव सू सहन कला।
महावीर री करुणा :
जातखण्ड वन संप्रागै बढ़ती बखत एक गरीब वामरा आय ने महावीर र चरण में पड्यो अर कैवरण लाग्यो-हे कुंवर! थां साल भर ताई खूब दान-दक्षिणा देयर गरीवां री गरीबी मेटी, पण म्हूं खोटा भाग रो गरीब कोरोइज रेइग्यो। म्हारा टावर अन्न रा दारणा-दाणा ताई तरसा है। हे भगवन ! अवै म्हारी गरीवी मेटो । श्रमण महावीर बोलिया-अवै तो म्है घरबार, धनदौलत, राजसी ठाठ-बाठ से त्याग दिया है। वामण कवरण लाग्योप्रापर कन कांई चीज नी हुवै तो आपर कांधा पर पड़ियौ ओ कपड़ो म्हन बगस दो। महावीर उरग कपड़े मांय सू भी माधो फाड़र बामण नै दे दियो अर आतम चिन्तन मे लीन व्हग्या।