________________
६७
बीस वरसां ताई गृहस्थ धरम री सुद्ध श्राराधना कर र श्रानन्द समाधिपूर्वक देह त्याग करियो ।
चौबीसमो बरस :
वेसकीमती भावरतन :
वैसाळी रो चौमासो पूरो कर र महावीर कोसळ नगरी रै ऐड़े-नैड़े विचरण करता हुया साकेतपुर पधारिया । यठे जिनदेव नाम से एक बड़ो वैपारी हो । एकदा वो विराज-वैपार खातर कोटि बग्स नगर गयो अर ग्रठा रा राजा किरातराज नै कीमती रतन अर गंणा आदि निजर करिया | वांने देख राजा बोल्या - इसा रतन कठे पैदा हुवे ? राजा री प्रावात सुरण जिनदेव बोल्यो - राजन् ! म्हार देस में इरण सूं भी बत्ता कीमती रतन पैदा हुवे । किरातराज रै मन में इसा रतना आळा देस नै देखण री इच्छा हुई । जिनदेव साकेतपुर रा राजा ने इण वात री खवर दीवी । पछे किरातराज जिनदेव रै सागै साकेतपुर श्राया । वठे वां दिनां भगवान महावीर आयोड़ा हा । राजा सत्रु जय ग्रर हजारां री तादाद मे घणाई लोग प्रभु दरसरण खातर श्राया हा । नगर में श्रा भीडभाड अर चहल-पहल देख किरातराज ने घणो इचरज हुयो । वी जिनदेव स पूछियो - सार्थवाह ! औ इतरा मिनख कठै जायऱ्या है ? जिनदेव पडूत्तर दियो- राजन् ! रतनारो एक बड़ो वैपारी अठे आयो है वो सबसू बढिया बेसकीमती रतना रो धरणी है । जिनदेव री बात सुण किरातराज ₹ मन में उण वैपारी सू ं मिलण री जिज्ञासा हुई ।
जिनदेव र किरातराज दोन्यू' महावीर (ज्ञान, दर्शन चारित्र इरण तीन रतनां रा धारक) री धरम सभा में गया । वठे जा'र प्रभु रा चरणां में वंदना - नमस्कार करने, उणां सूं किरातराज रतना रै प्रकार घर कीमत रे बारे में पूछियो । महावीर बोल्या - देवानुप्रिय ! रतन दो भांत राहुवै । एक द्रव्य रतन भर दूजा भाव