Book Title: Mahavira ri Olkhan
Author(s): Hansraj Baccharaj Nahta
Publisher: Anupam Prakashan
View full book text
________________
१६४
माया मित्तारिण नासेइ।
दश० १३० माया मित्रतारो नास करै। लोभो सव्वविणासणो
दश० ८३८ लोभ सगळा सद्गुणां रो नास करै। लोभ संतोसो जिणे।
दश०८।३६ लोभ नै संतोस सूजीतणो चाइजे। .. जहा लाहो तहा लोहो, लाहा लोहो पवड्ढइ । दो मासकयं कज्ज. कोडी ए वि न निठ्ठियं ॥
उत्त०८।१७ ज्यू-ज्यूलाभ हुनै त्यू-त्यू लोभ पण वधै । दो मासा सोना सूपूरो होबा आळो काम करोड़ा सूभी पूरो नी हुयो।
सुवण्ण-रूप्पस्स उपव्वया भवे, सिया हु कैलास सभा असंखया । नरस्स लुद्धस्स न तेहि किंचि इच्छा हु आगाससमा अणन्तिया ।। उत्त० ६।४८
कदाच सोना, चांदी रा कैलास जिसा बड़ा अनेक परवत हुय जावै तो भी लोभी मिनख नै तृप्ति नी हुवै, कारण कै इच्छावां आकास रै समान अनन्त हुवै ।
करेइ लोहं, वेर वड्ढइ अप्पणो। आचा० २१५ जो आदमी लोभ करै, वो चारु मेर बैर री बढ़ोतरी करै ।
१७. राग-द्वोष रागो य दोसो वि य कम्मबीय,
कम्मं च मोहप्प भवं वयंति । कम्मं च जाई मरणस्स मूलं, दुक्ख च जाइमरणं वयंति ।।
उत्त० ३२७

Page Navigation
1 ... 172 173 174 175 176 177 178 179