Book Title: Mahavira ri Olkhan
Author(s): Hansraj Baccharaj Nahta
Publisher: Anupam Prakashan

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Page 176
________________ १६६ श्रातमा इज प्रापण करियोडा दुखांरी भोगणहार है । तुट्ट ति पावकमाणि, नवं कम्ममकुव्वनो । सूत्र० १|१५||६| जोन वा करमनीं बांधे. उगरा पैल्योड़ा बंध्या पाप करम जावै 1 कतारमेय श्ररगुजाइ कम्मं उत्त० १३/२३ करम सदा कर्त्ता (करमाळा) रे पाछे-पाछें चालै । सयमेव कडेहि गाइ, नो तस्स मुच्चेज्जऽपुट्ठयं । नष्ट हुय सूत्र० १।२|१|४ जीव आपणे खुद रे बरणायोड़ करमजाल में आवद्ध हुवै कियोड़ा करमा सू उरणांनै भोग्यां विगर मुगति कोनी | । १६. शिक्षा र व्यवहार विवत्ती प्रविणीयस्स, संपत्ति विणियस्स य, दश० | २|२१| श्रविनीत ने विपत्ति प्राप्त हुवै श्रर सुविनीत ने सम्पत्ति । ग्रह पंचहि ठाणेहि, जेहि सिक्खा न लब्भई । थम्भा कोहा पसाएणं, रोगेणालस्सएर य ॥ उत्त० ११।३। अहंकार, क्रोध, प्रमाद, रोग र आलस इरण कारणां सू शिक्षा प्राप्त नी हुवै। कह चरे ? कह चिट्ठे ? कहं मासे ? सहं सए ? कह भुजन्तो, भासन्तो, पाव कम्मं न बंधइ ? दश० ४|७| भंते ! किरण भांत चालां, किरण भांत ऊभा रेवां, किरण भांत बैठां, किरण भांत सूवां, किण भांत खावां, किरण भांत बोलां, जिस पाप करमां से बंधरण नीं हुवै ।

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