Book Title: Mahavira ri Olkhan
Author(s): Hansraj Baccharaj Nahta
Publisher: Anupam Prakashan

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Page 178
________________ १६८ चार भांत रा मानवीय करम करण सू आतमा मिनख जनम प्राप्त करें - सहज सरळपरणो सहज, विनम्रता, दयालुता अर अमत्स रता । २१. अप्रमाद आचारांग ||२|४| प्रलं कुसलस्स पमाएणं प्रज्ञाशील साधक नै प्रापणी साधना में किंचित् भी प्रमाद नीं करणो चाइजै । भारण्डपक्खी व चरप्पमत्तो । उत्त० ४६ भारण्ड पक्षी री भांत साधक अप्रमत्त ( जागरूक ) भाव सू विचरण करें | सव्वनो पमत्तस्स भयं, सव्व अपमत्तस नत्थि भयं । आचा० १|३|४| प्रमत्त आतमा नै चारूकांनी सूं भय रैवे । परण अप्रमत्त श्रातमा नै किरणी भी श्रोर सूं भय नी रैवै । आचा० ११२/१ धीरे मुहुत्तमवि णो पमायए धीर साधक मुहूर्त भर है खातर भी प्रमाद नी करें । असंखयं जीविय मा पमायए । उत्त० ४।१ जीवन असंस्कृत (क्षणभंगुर ) है । वोरो धागो टूट जाबा पर दुबारा जोड़ियो नीं जा सके । आ सोच र जरा भी प्रमादनीं करणो चाइजै | उट्ठिए नो पमायए आचा० १५/२ जो साधक एक'र प्रापणै कर्तव्य मारग पर बढभ्यो है, उरणने फेर प्रमाद नीं करणो चाइजै । mn

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