Book Title: Mahavira ri Olkhan
Author(s): Hansraj Baccharaj Nahta
Publisher: Anupam Prakashan

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Page 175
________________ १६५ राग पर द्वेषौ दोन्यू करमां रा बीज है। करमां रो उत्पादक मोह इज मानीजै । करम सिद्धान्त रा विशिष्ट ज्ञानी आ वात कैवै कै जनम-मरण रो मळ करम है अर जनम-मरण इज एक मात्र दुख है। राग-दोसे य दो पावे, पाव कम्म-पवत्तणे उत्त० ३१॥३॥ राग अर द्वष ये दोन्यू पाप करमां री प्रवृत्ति कराबा में सहायक हुनै। छिदाहि दोसं विणएज्ज रागं, एवं सुही होहिसि संपराए । दश० २।। द्वेष नै नष्ट करो, अर राग नै दूर करो। इयां करण सूइज संसार में सुख री प्राप्ति हुने। अकुत्रयो एवं गत्थि। सूत्र० १११५७ जो पातमा आपण भीतर में राग भर द्वेष रूप भाव करम नीं कर, उण र नूवा करम नी बंधै । १८. कर्म सिद्धान्त सुचिण्णा कम्मा, सुचिण्णफला भवति । दुचिण्णा कम्मा, दुचिण्णफलाभनति ॥ औप०५६ आच्छा करमां रो फळ पाच्छो पर बुरा करसां रो फळ बुरो हुवै। सव्वे सयकम्मकप्पिया सूत्र ११२।३।१८ । प्राणीमात्र प्रापणे करियोड़ा करमा सू इज विविध योनियां में भ्रमण करें। कम्ममूलं च जं छणं प्राचा० १३१ करम रो मूळ क्षण हिंसा है। एगौ सयं पच्चणुहोइ दुक्खं । सूत्र० १।५।२।२२

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