Book Title: Mahavira ri Olkhan
Author(s): Hansraj Baccharaj Nahta
Publisher: Anupam Prakashan

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Page 173
________________ चउक्कसायावगए म पुज्जो। दश० ६।३।१४ जो चार कपाय सू' रहित है, वो पूज्य है। न विरूज्झज्ज केराइ। सूत्र० १५।१३ किरणी रै भी सागै वैर-विरोध मत राखो। . कसाया अग्गिणो वुत्ता, सुय सील तवो जलं। उत्त० २३१५३ कपाय (त्रोध, मान, माया, लोभ) आग कहीजे। उण ने बुझावण सारं श्रु त, शील अर तप जल रूप है। जो उवसमइ तस्य अत्यि पाराहणा। वृहत्कल्प ११३५ जो कपाय रो उपशम करै, वो इज वीतराग प्रभु रे पथ रो सांचो पाराधक हुवै। अप्पारणं पिन कोवए। उत्त० ११४० अपने आप पर भी कदै किरोध मत करो। कोहो पीईपणासेइ। दश० ११३८ किरोष प्रीति रो नाश करै। उसमेण हणे कोहं। दश० ८।३६ शान्ति सूकिरोध नै जीतो। मागविजएणं मद्दव जणयइ । उत्त० २६१६८ अहकार नै जीतण सूजीव नै नम्रता री प्राप्ति हुवे। माणो विरणयनासणो। दश० ८।३८ अहंकार विनय गुण रो नास करै । मारण मद्दवया जिणे दश० ८।३९ अहंकार नै नम्रता सूजीतणो चाइज। मायमज्जवभावेण दश० ८३९ सरळता स्माया अर कपट नै जीतणो चाइजै । माया विजएण अज्जवं जरगयइ उत्त० २६/६६ माया नै जीत लेवण सू सरळता प्राप्त हुगे।

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