Book Title: Mahavira ri Olkhan
Author(s): Hansraj Baccharaj Nahta
Publisher: Anupam Prakashan

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Page 163
________________ १५३ एकठो करियोड़ो धन यथा समय दूजो उड़ा लैवै परण संग्रही नै उणां करमां से फळ भोगणो पड़े । कामे कमाही कमियं खु दुक्खं । दश० २५श , इच्छावां रो नास (अन्त) करणो दुख रो नास करणो है । एतदेव एगेसि महत्भयं भवई आचा० ५|२| परिग्रह इज इरण लोक में महाभय रो कारण हुवै । असंविभागी ग हु तस्स मोक्खो जो श्रापणी प्राप्य सामग्री बांटे नीं, उगरी मुगति नीं हुवै । दश० ६।२.१३१ ७. तप सउणी जह पंसुगुडिया, विहरिणय धंसयइ सियं रयं । एवं दविप्रोवहाणवं कम्मं खवई तवस्सि माहणे || सूत्र० २।१।१५ जिण भांत सकुनी नाम रो पंछी आपण पंखा नै फड़फड़ार उण पर लाग्योड़ी वूड ने झाड देवै । उगीज भांत तपस्या सूं मुमुक्षु आपण आत्म-प्रदेसां पर लागी करम-रज ने दूर करें । भव कोडिय संचियं कम्मं, तवसा गिज्जरिज्जइ । उत्त० ३०|६| करोड़ा भवां स संचित करियोड़ा करम तपस्या सू जीर्ण अर नष्ट हुय जावै । नो पूरणं तवसा श्रावहेज्जा । सूत्र० ११७/२७ तप सू ं साधक नै पूजा-प्रतिष्ठा रो कामना नीं करणी चाइजै । छन्द निरोहेण उवेइ मोक्खं । उत्त० ४वा. इच्छा निरोध तप सूं मोक्ष री प्राप्ति हुवे । तवेण परिसुभई । तप सू आतमा री सुद्धि हुने । उत्त० २८१३५

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