Book Title: Mahavira ri Olkhan
Author(s): Hansraj Baccharaj Nahta
Publisher: Anupam Prakashan

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Page 161
________________ १५१ ४. अस्तेय दन्त सोहणमाइस्स अदत्तस्स विवज्जणं उत्त० १९२८॥ अस्तेय व्रत में सरधा राखरिणयो मिनख विगर किणी री आज्ञा सूदांत कुरेदवा खातर तिणको भी नी उठावै । अणुनविय गेण्हियवं। प्रश्न २।३। किणी भी चीज नै विगर पाना सू ग्रहण नी करणी चाइजै । लोभाविले आययई अदत्त । उत्त० ३२।२६। . जो मिनख लोभ सूअभिभूत हुवै वो चोरी करै । परदबहरा नरा निरणुकंपा निरवेक्खा । प्रश्न. १॥३॥ दूजा रो धन लेवा पाळो मिनख निरदयी अर परभव री उपेक्षा करण पालो हुदै । पररांतिगऽभेज्जलोभ · मूलं । प्रश्न ११३६॥ पर धन री गृद्धि रो मूळ हेतु लोभ है अर आइज चोरी है।। ५. ब्रह्मचर्य जहां कुम्मे सगाई, मए देहे समाहरे । एक पावाइ मेहावी अझप्पेरण समाहरे। सूत्र. बा१६॥ जिण भांत काछन्बो आपणै अगा नै माय नै सिकोड'र खतरा' सूमुक्त हुय जावै, उरणीज भांत साधक अध्यात्मयोग सू अन्तराभिमुख हुयर खुदनै विषयां सूबचावं।

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