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३. अचार्य :
इस व्रत में चोरी रो देशतः त्याग करियो जागै । इण व्रत र धारक रो अत्रौर्य में पूरी विसवास हुने । वो दूजां री वस्तु चोरी री नियत सूनी लैवे। चोर ने चोरी करण में की भात री मदद नीं दे । नकली वस्तु नै असली वतार पर असली नै नकली वतार नीं वेचे । वस्तु में किणी भात री मिलावट नी करै। राज रै नियमांरे विरुद्ध काम नी कर । जेब काटण अर सैध लगाए जिसा चोर करमा सू सदा बचियो री। कम ज्यादा नाप तौल नी करे। मिनख रैथम, सक्ति पर सम्पत्ति रो अपहरण नी करै। न्याय अर नीति सूधन कमार आजीविका चलागे। इण व्रत रै पाळण सू सम्पत्ति रो अपहरण मिटर न्याय-नीति रो प्रसार हुगे। ४. ब्रह्मचर्य :
इण व्रत रो धारक परस्त्रीगमन रो त्याग व स्वस्त्री गमन री मर्यादा राखे । अप्राकृतिक काम भोग नी करै । नग्न नृत्य, अश्लील गायन, भद्दी मजाका ग्रादि सूबचे। इण व्रत सूव्यभिचार, दुराचार मिटर सदाचार रो प्रसार व पोषण हुवे ।
५. परिग्रह-परिमारण :
इण व्रत में परिग्रह र परिमाण रो नियम कियो जाग।ई व्रत रोधारक या सोचे के परिग्रह वृत्ति विपय कषायां ने बढ़ाय पाळी है,। गिरस्त होवरण रे कारण वो पूर्ण रूप सूतो परिग्रह रो त्याग नीं कर सके पण धन-धान्य, खेती, पशु, दुकान, मकान, सोना, चांदी, आदि राखण री निश्चित मर्यादा अवश्य करें। इस व्रत रै पाळण सू आर्थिक विषमतावां पर संघर्ष मिटर समता व शान्ति रो प्रसार हगे।