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रेगिस्तान पड़तो हो । गरमी रा दिन हा कोमां दूर ताई वसती नों ही । भूख रतिम मूं साधुग्रां ने धरणी परेसानी हुई। पण से तकलीफ उठा'र भी महावीर वीतभय नगरी पचारिया | उदायन प्रभु रा दरसरण करिया । उणांरी श्रमरतवाणी सुगी । श्रवै वीने राजकाज सू मोह नी । वी राजपाट त्याग'र मुनि वणण रो संकल्प लियो । वीरं श्रभीचि कुमार नाम रो पुत्र हो पण वीं राज रो भार उगने नो मूंप्यो । वी मन में सोचियो कं जिण राज नै वंधन समझ'र म्हूं उरणरो त्याग कर हूं उरण राज रे बंधन में आपण पुत्र नै क्यूं फंसाऊ ? ग्रा सोच वी राज रो वारिस भारगंज केसी कुमार ने वरणायो र खुद महावीर कनै दीक्षा प्रगीकार करी ।
मुनि उदायन दीक्षा ले' र कठोर तपस्या करण लागा । विचरण करता हुया एकदा वी वीतभय नगर पधारिया । केसीकुमार रो मंत्री खोटा सुभाव रो हो । मुनि नै नगरी में बाया जारण वी राजा रा कान भरिया - महाराज ! उदायन पाछा गृहस्थी वरण है। उणां री राज करण री मनसा है । वी श्राप दियोड़ो राज पाछो खोसरगो चावें । ई कारण मुनि वेस में ईज उरगा रो काम तमाम कर देणो चाइजै । नी रेवेला वांस ग्रर नीं वाजेली वांसुरी । राजा केसी मत्री है वहकावा में प्रायग्यो । एक दिन वां भिक्षा में मुनि उदयन नै जहर दे दियो । भोजन मे जहर रीठा पड़ियां पारण भी वां नै नी तो राजा पर किरोध प्रायो अर नीं ईर्ष्या हुई । वां समता भाव र साग समाधि मरण अंगीकार करियो ।
छट्ठो बरस :
चुलनीपिता अर सुरादेव :
वाणिज गांव सू विहार कर महावीर वाराणसी कांनी पधारिया | कोष्टक चैत्य में विराजिया । चुलनीपिता अर सुरादेव वाराणसी रा नामी गृहस्थ हा । इणारं कनै २४ - २४ करोड़
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