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करियो। एक दिन रोहक मुनि मन में कई संकावां उठी। वी भगवान रै कनै पाया अर पूछियो-प्रभु ! लोक अर अलोक मांय सूपैली कुरण अर पाछै कुरण है ?
__ भगवान कह्यो-लोक पर अलोक दोन्यू शाश्वत है, ई कारण पैली अर पार्छ रो फरक कोनी।
रोहक मुनि दूजो सवाल पूछियो-भंते ! जीव पैला हुयो के अजीव ? भगवान फरमायो-लोक अर अलोक री भांत जीव पर अजीव पण शाश्वत है। इण कारण प्रणां में आगे-पाछै रो काई भेद कोनी । इणीज भांत रोहक मुनि महावीर सू केई सवाल पूछ या अर वां रो समाधान पायो । ग्यारमो बरस :
राजगृह सूविहार कर र भगवान कयंगळा नगरी पधारिया। अठ छत्रपळास उद्यान में विराजिया । कयंगळा रै नेड़े श्रावस्ती नगर में स्कंदक नाम रो एक परिव्राजक रैवतो हो। वो विविध सास्त्री रोजाणकार हो । एकदा पिंगळ निग्नथ स्कदक सूलोक री स्थिति रैवार में सवाल पूछिया। स्कदक ऊरणां सवाला रो जवाब नी दे सक्यो । स्कन्दक नै ठा पड़ी के भगवान महावीर छत्रपळास उद्यान में रुक्योड़ा है । वी इणां सवाला रो जवाब देय सके। स्कन्दक भगवान ₹ कनै आयो अर वंदन नमस्कार करर आपणी जिज्ञासा परगट करी । स्कन्दक रा सवाल सुगण भगवान फरमायो स्कन्दक ! लोकचार भांत रा है-द्रव्यलोक, क्षेत्र लोक, काळलोक अर भावलोक । द्रव्य री अपेक्षा सू लोक सांत हैं, क्षेत्र री अपेक्षा सू असख्य कोड़ाकोडि योजन विस्तार आळो है, काळ सूलोक री नी कदै सरुपात हुवे पर नी समाप्ति, अर भाव री अपेक्षा सू लोक अनन्त-अनन्त पर्यायां रो भंडार है। इण भांत लोक सांत परण है पर वर्णादि पर्यायां रो अन्त नी हुवरण सूअनन्त परण है।