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जितगे बळ गोसाळक में है ऊसूकई गुणो बत्ती बळ निग्रंथ प्रणगार में हुवे । पण अणगार क्षमासील हुवै, पापणी तपरी सक्ति रो दुरुपयोग नी करै । वी किणी नै कष्ट नी देव। महावीर सावचेत करतां आनन्द सूकयो- गोसाळक अठ प्रावण आळो है । वो किरोध अर मान रा नसा में आंधो हुयोड़ो है । वो कोई भी खोटो काम कर सकै । ई कारण वीसूकोइ मुनि वात नी करै। सैं मौन रैवे ।
उणीज ताळ लाल-पीळी आंख्या काढतो गोसाळक आपण दळबळ सागै वठे आय पोंच्यो अर बोल्यो-महावीर ! थां सर्वज्ञ हुवता थकां भी म्हनै नी ओळखो । थारो शिष्य मंखळिपुत्र गोसाळक तो कदकोई मरग्यो। म्हूं तो कौडिन्यायन उदायी हूँ। म्हारो ओ सातमो सरीरातर प्रवेस है। पण थां अणजाण बण'र अबार भी वाइज पुराणी रट लगाऱ्या हो के ओ म्हारो शिष्य गोसाळक है। गोसाळक री आ बात सुरण महावीर बोल्या-गोसाळक ! जिरण भांत कोई चोर आपण बचाव रो दूजो साधन नी देख, एक तिनका री आड़ मे खुद नै लुकावण री कोसिस करै ! पण यू चोर लुक नी सकै भलेई वो समझै के मुहूं लुक्योड़ो हूं । इणीज भांत गोसाळक तूं गोसाळक ही है, पण तूं आपनै छिपावरण खातर कूडो बोले ।
प्रभु री प्रा बात सुण गोसाळक पापा सूबारै व्हैग्यो । अर गुस्से में प्राय अंटसंट बकवा लागो । वीं कह्यो-थारो काळ नैड़ो आयग्यो है । तूं प्रबार जलबळ नष्ट हुय जावैला।
' गोसाळक रा रोस भर्या में सबद सुण'र भी महावीर नै किरोध नी प्रायो। दूजा मुनि भी शांत हा । पण सर्वानुभूति अरणगार गुरु रै प्रति इसा अपमान भरिया सबद सुण चुप नी रैय सक्या । वी बोल्या-गोसाळक ! भगवान महावीर नै तो थे आपणा गुरु मानिया हा । आज थूइणां री निन्दा कर रयो हो है ? आ चोखी बात कोनी । किरोध में विवेक नै मत बिसर ।