Book Title: Mahavira ri Olkhan
Author(s): Hansraj Baccharaj Nahta
Publisher: Anupam Prakashan
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७५
श्रावतां देखतो उरणां पर भूखा ना'र जियां टूट पडतो। अरजुनमाळी ₹रा अातंक सू लोग उठी कर पारगो-जागो छोड़ दियो। राज री तरफ सूअरजुन री कांनी आणं-जाणं पर प्रतिबंध लागग्यो।
इगीज समय भगवान महावीर राजगृह पधारिया। हजारां लोग महावीर रा दरसरण करणा चावता हा । परण अरजुन माळी रै डर सूकिणी मे उण ठौड़ जावरण री हिम्मत नो ही। पाखर एक सरवावान श्रवक सुदरसरण दृढतारै सागै प्रभु दरसण खातर प्रागे कदम बढ़ायो । वो नगर सूवा'रै प्रायो। चारुकांनी सन्नाटो हो । एक अकेले मिनख नै सामै श्रावतां देख अरजुन माळी आग ववूलो हुयग्यो। उगने मारण खातर वो मुद्गर लय उण पोर झाटियो । सुदरसरण वोरी या हरकत देख किंचित भी नी डर्यो । वो प्रभु रो सुमरण कर ध्यान मे सांत भाव सूखड़ो हुयग्यो । पण प्रो काई ? अरजुन रो उठ्यो मुद्गर उठ्योई रेयग्यो। वी सुदरसरण ने मारण री घणी कोसिस करी, पण मुद्गर हिल्योई कोनी।
सुदरसण री हिम्मत अर घरम री मजबूती रै सामै अरजुन रो किरोध सांत हुयग्यो । वो उण रै चरणां में पड़ग्यो अर प्रापणं कूर करमां रो प्रायश्चित करण लागो ।
अरजुन नै यू पस्चाताप करतां देख सुदरसण बोलियाअरजुन तू घवरा मत । तू साचैइ मिनख है, दानव कोनी। किरणी कारण सूथारै सरीर मांय राक्षसी प्रवृत्तियां हावी हुयगी है। अब थारा मिनखपणो पाछो जागग्यो है । तू म्हारै सागै चाल र क्षमानिधि प्रभु महावीर रा दरसरण कर। अरजुन सुदरसण रै सागै महावीर कनै आयो । प्रभु रा उपदेस सुण वीं आंख्यां सू पश्चाताप अर करुणा रा पासू वेवण लाग्या। वी भगवान रै सामै सगळा पाप करमा रोप्रायश्चित कर मुनि धरम अंगीकार करियो।

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