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जणा एक निजर सूमहावीर कांनी देखऱ्या हा। एकाएक मंगळ गीत अर बाजा वन्द व्हैग्या। चारुकांनी एकदम सांति छायगी। महावीर पंचमुष्ठि केसलुचन करियो । वरणाँ रै चेहरा पर घरणी खुसी ही, लिलाट अलौकिक तेज सूचमकर्यो हो। महावीर हाथ-जोड़ सिद्ध भगवान नै नमसकार करियो अर प्रतिज्ञा करी के मुहूं आज सू समभाव धारण करूं हूँ। मन, वचन अर करम सूपापपूर्ण सावद्य) प्राचरण रो त्याग करू हूँ। मारै मारग में जे मुसीबतां पर उपसर्गा प्रावैला म्हूं उरणानै समभाव सू सहन करू ला । अर साधना ई कंटीला मारग पर लगातार चालतोइ रैऊला । देखता ई देखता वर्धमान श्रमण वरणग्या । अव वां रो घर, परिवार पर राज सू नातो टूटग्यो । वी इसा राज में पोंचग्या हा जठे किणी भांत रो दुख नी हो, वी इसा परिवार में मिलग्या हा जठ म्हारै अर थारै रै वीचै कोई भेद नी हो।
अगणित प्रांख्यां प्रभु महावीर र दिव्य सरूप रो दरसरण कर री ही, अगणित कान वांकी दिव्य साधना रो उद्घोष सुरगऱ्या हा। श्रद्धा अर उमाव सूहजारू प्रख्यां एक सागै बरसवा लागी। लोगां रा हाथ आप आप जुड़ग्या अर माथा प्रापै प्रभु रा चरणां में नमग्या। असंख्य कंठा सूएकै सागै आवाज गूजी 'श्रमण महावीर री जय ।
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