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भगवान पार्श्व रो व्यक्तित्व घरणो अनोखो हो । श्राप टावरपण तू ई दृढ प्रतिज्ञ, स्वाभिमानी, शांत, दयालु, चिन्तनशील अर मेघावी हा । एकदा पंचान्नि तप करता हुया कमठ नामरै बड़े तपस्वी र चारू कानी वळती धूणीरी लाकड़ियां सू आप नागनागली री रक्षा करी । इण घटना सू' ग्रापरे दिल में संसार सू विरक्ति हुयगी अर धाप प्रातमकल्याण खातर संन्यास ले लियो ।
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धर्म साधना करवा में भगवान पार्श्व चारित्रिक नैतिकता पर धरणो बल दियो । आप पंचाग्नि जिसा तपां में हुवरण आळी जीव हत्या कांनी लोगां रो ध्यान खिच्यो र कयौ के धर्म रो मूळ दया है। ग्राग जला तो से भांत रा जीवां रो नास हुवै। जिरण तप में जीवां रो नास हुवै वीं में धर्म कोनी । विना पाणी री नदी री भांत दया शून्य बरम भी बेकार है । जिरग भांत तीर्थकर नेमिनाथ पशुहत्या रो बहिष्कार करियो उरणीज भांत भगवान पार्श्व धर्म रे नाम पर हुवरण ग्राळी जीव हिसा रे विरुद्ध प्रावाज उठाई ।
प्रभु पात्रं आपण युग मे फैल्योड़ी कुरीतियों ने देख अहिसा सत्य, अस्तेय र अपरिग्रह या चार व्रता रो उपदेश दियो, जो चातुर्याम धर्म र नाम सूं प्रसिद्ध है। प्रभु र आध्यात्मिक र नैतिक विचारां नू प्रभावित होयर वैदिक परम्परा रो एक प्रभावशाली दळ याज्ञिक हिसा रो विरोधी बग्यो हो । इरण भांत दो विरोधी विचारधारा से संगम इण काळ में हुयो । थाचार पर विचार में जितरा बत्ता परिवर्तन इरण काळ में हुया, उतरा किरणों युग में नीं हुया । इरगीज कारण जैन तीर्थंकरां में पार्श्वनाथ सबसू घणा लोकप्रिय है । भारतवर्ष र जुदा-जुदा भागां में जितरा, मिंदर, मूर्तियां, तीर्थस्थान इरणां रे नाम रा मिळे उतरा दूजा तीर्थकरां रानीं मिले। गजपुर रै नरेश स्वयंभू, कुशस्थपुर रै राजा रविकीर्ति, ₹ तेरापुर र स्वामी करकंडु जिसा कई बड़ा बड़ा राजा मणांरा