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रो प्रेम नितहमेस वणा पर वरसतो हो, पण फेर भी महावीर रो मन उणां मे रम्यो कोनी । वणारी प्रातमा बाहरी भौतिक सुखां में मुख रो अनुभव नी करती। वा तो जीवन रे सांचा सुखां री खोज में लाग्योड़ी ही । उरण समै मिनख आपण सुत्रारथ खातर बीजा प्राणियां नै तकलीफ देवता हा, धरम रै नाम पर घणखरा अंधविसवास समाज मे फैल्योड़ा हा। चारूंकांनी दुखी मानखा रो हाहाकार हो । महावीर रो हिरदय आ दसा देख पसीजग्यो । वां प्रो निश्चय करियो के म्हन इण मायावी संसार सूऊपर उठणो है, दुखी मिनखां रो दुख मिटावरगो है। ई दुख नै मेटण सारुपातमवळ री जरूरत है अर प्रो आतमवळ त्याग रै मारग नै अपराया बिगर कोनी मिल सके।
माता-पिता रो वियोग :
जद महावीर अट्ठाइस बरस रा हा, वां रा माता-पिता देवलोक हया । वर्धमान नै आपणां मां-बाप सू घगो हेत हो। फेर भी वणां रोवणो-कळपणो नी करियो। वी आच्छी तरेऊ जाणता हा के प्रो सरीर नासवान है। उपरो मरणो-मिटणो वांक वासतै कोई इचरज नी हो।
माता-पिता रै देवलोक हयां पछै महावीर री गरभवास में करियोड़ी प्रतिज्ञा पूरी व्हग्यी ही। अवै वणा रै मन में दीक्षा लेवरण री भावना जागी । वां आपण बड़े भाई नंदिवर्धन रै सामै अापण मन री वात राखी।. छोटे भाई रै संजम लैण री वात सुरण एकर तो नंदिवर्धन रो काळजो काप ग्यो। वी गळगळा हो'र वोल्या- माइता रै विजोग दुख नै हाल पापा भूल्या कोनी अर अवै थां भी संजम लेय नै म्हनै एकलो छोड़णो चावी । मो समै थारै योग कांनी बढ़ण रो कोनी, थोड़ा औरुं रो।