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ठोकरां खावरणी पडरी है। सांचाई साधु रो र्ज वन घरणो कठोर है। म्हूं तो इसो जीवन नी जी सकूला। कांई सारी रातां जागतोई रेवू ला ? इण उधेडबुन में मेघकुंवर ने रात भर नींद नीं आई । वां निश्चय करियो के परभात व्हताई म्हूं भगवान महावीर ने सें बातां अरज कर पाछो गिरस्त बरण जाऊला ।
परभात व्हैताई मेघकुंवर महावीर कनै गया । अन्तरजामी महावीर मेघ री मन री पीड़ा समझग्या हा । वां फरमायो - मेघ ! थोडा सा कष्टां सू दुखी व्हैइने ग्रागे वढया चरण पाछा पळणा काई ठीक है ? छणिक वेदनावां सूं दुखी होय तूं उजाळे सूं अंधारा मे भटकरणो चावै । तू याद कर आपण वीत्योड़े भव नै जद पसु जूग (हाथी री जू'ग) में तू घरणा कष्ट भोग्या हा उण पसु जूग में थोड़ी सहन शक्ति रे कारण ईज थनै पाछो श्रो मिनखजमारो मिल्यो है | दुरळभ मिनखजमारो पायने तू क्यूं कायर बाँ है ?
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महावीर से वारणी सुरांता-सुगंता मेघ नै जाति समरण ज्ञान व्हैग्यो । वीने प्रापण पूरव जनम री घटनावां एक-एक कर निजर ग्रावा लागी । वीनै याद आयो- वो हाथी री जंग में रूप अर बळ रो घणी हो । ईं खातर वो पूरा हस्तिमण्डळ रो नायक हो । एक बार अचारणचक जंगल में लाय लागो । में पशु-पक्षी आपणी रक्षाखातर भाग'र वै एक मैदान में भेळा हुया । ईं मुसीबतरी घड़ी में नार, हिरण, लोमड़ी पर खरगोस जिसा जिनावर आपसी बैर भाव भूलग्या हा । श्राखी मैदान जिनावरां सू खचाखच भरग्यो । पग घरवा री जगां नीं हो । उण बगत वो हाथी खाज खुजाबा ताईं एक पग ऊंचो करियो । इतरा में एक खरगोस उण रा पग हेटै रक्षा ताई और बैठग्यो । हाथी देख्यो के म्हूं पग घर दूंला तो श्रो खरगोस मर जावेला । ई कारण वी उठायोड़ो पग नीचे नी मेलियो श्रर तीन पगां पर दो दिन-रात ऊभो । तीजै दिन लाय सांत हुब पर खरगोस वठा सू दूजी ठौड़ चल्यो ग्यो । दजा जिनावर