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संकल्प रा धरणी महावीर रो ध्यान तिळ भर भी नीं
डिगियो ।
उमंगों रो क्रम ग्रागे बढतो ई । एक भूखो तिरसो टाऊ प्रायो । यो नख मिटावण मारू खारगो वरणावरणो चावतो हो । बीड चुल्हो निजर नी आायो । वी ध्यान में लीन ऊभा महाबीररावां मूं चूल्हा से काम लेयर खारणो वरणा लियो । इण घोर पीडा मूं भी महावीर रा ध्यान भंग कोनी हुयो । एकइ रात में धान्व उपसर्गो सू महावीर री साधना रो तेज ग्रीरू निखरग्यो । नूई चेतना सू भर र दिन उगे वरणां आगे कदम बढ़ाया । पण संगम हाळताई महावीर से साथ कोनी छोडियो । उरगां नै यो तकलीफ देवण खातर वो भी उरणारं सागे-सागे चालियो ।
एकदा तो लगाव रे बाग में महावीर ध्यान मगन हा । उणां नै ध्यान मगन देख संगम साधु से भेस वगार गांव में चोरियां करण नै गयो ! लोगां वी ने पकड़' र मारियो - कूटियो । वो बोल्योम्हने मती मागे । है तो म्हारै गुरु र केवरण सू चोरी करी है । जै ₹ थां ग्रमली चोर ने पकड़नो चादो तो वाग मे जावो । वठे म्हारो गुरु ध्यान से मांग वणा'र ऊभी है । लोग बाग में जा' र प्रभु पर लकडियां घर लाठिया मूं वार करिया, परण महावीर डौल वरण'र ध्यान में लीन रह्या ।
इरण भात सगम देव छह महिना नाई महावीर रै पाछे पड़ियौ यौ र उपसर्ग देवतो । इण उपसर्गा मे महावीर नै ग्रन्नपाणी भी नी मिल्यो । संगम देख्यो के इतरा कष्टां सू भी महावीर ग्रापणं ध्यान सू अळगा नी हुया तो उरणारी साधना सू प्रभावित रे हु'र वो महावीर रैपगां पड़ियो र वासू माफी मागी । महावीर ₹ मन में कष्ट देवगिया संगम रै प्रति नी रोस हो अर नी द्वेष ।