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विहार और धर्मप्रचार। १०७ साथ २ मुख्य गणधर ( Chief Pontir) के रूपमें तीस वर्षे पर्यन्त रहे थे और जब भगवानका निर्वाण हुआ था तब उसी समय आपको केवलज्ञान प्राप्त हुआ था। भगवान महावीरने अपना प्रथम उपदेश गौतमको दिया था। पश्चात् अपने निकटके मनुष्योंको और उपरांतमें अन्य देशोंमें विहारकर उपदेश दिया था।
(See life of Maharvira P. 44.) अधर्मके घोर अज्ञानान्धकारमें भगवानने जैनधर्मके प्रचारसे ज्ञानसूर्यको प्रकट करके निर्मल धर्म प्रकाशको चहुंओर फैला दिया था। अन्य विविध धर्मपन्थोंके अनुयायी आपकी शरणंमें आए थे। यहां तक कि बिचारे निरपराध, निर्बोध, निर्बल पशुओंके भी त्रास दूर हो गए थे। लोगोंने धर्मका यथार्थरूप देख लिया था. वे अब क्रियाकाण्डमें नहीं फंसते थे। यज्ञवेदको रुधिरकी मर्मस्टशी लाल धारासे नहीं रंगते थे । अहिसा परमो धर्मः' का
अहिर्निश ध्यान रखते थे। भगवान भी भवभ्रमण भवातुर भव्यात्माओंको सन्मार्ग पर लानेमें प्रबल कारण थे । उनको वस्तुको खभाव यथावत् दर्शानेमें साक्षात् ज्ञान प्रकाशका कार्य करते थे। उनके दर्शनसे लोगोंकी शङ्काएँ मिट जाती थीं। वे गडाके दोनों ओर अपना प्रकाश फैलाते विंचर रहे थे।
सर्व प्रथम आपका शुभागमन मगधमें हुआ था। वहां व कुण्डलपुरके इर्दगिर्दके देशोंमें आपने धर्मोपदेश दिया था। मगधसे । भगवान विहारको गए थे। वहाँपर आपने श्रावस्ती नगरीको अपने दिव्यज्ञान-प्रकाशसे प्रकाशमान किया था। और वैषष्ठी आदि स्थानोंपर सरस ज्ञानामृतका पान लोगोंको कराया था फिर