Book Title: Mahavira Bhagavana
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Digambar Jain Pustakalay

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Page 307
________________ २९६ wwwwwwwwwwwwwwww पृष्टः पकि शुद्ध २. . २५ २६५ १८ . २७ १४ ૨ शुद्धिपत्रशुद्धाशुद्धिः। अशुद्ध सदाचार.रहना सदाचारसे रहती भाविक भावी पतिके विशारद जैनियों यदि । विशारद यदि उसके उसको तापसके शरीरमें लकड़ तापस उबई तो समन्तभद्र सम्राटको सम्राटको चन्द्रगुतको फरलामा फरन्पि एक काठ एक दीर्घ काल लिए गए से लिए गए व्यापारि सर्वत करगरी कारीगरी गन्यो प्रन्यों भनत शत्रु মলার अन्य के अन्य पोंक जैन शाबों वर्णन जेनशानों गम गर्म Fredom * Freedom व्याधिक 'व्यापिकी हुए . दिए यसवे' । यज्ञवेदी भगवान भगवान चौदह संग भतु, यह- विद्या सर्व भगवान भस्तु, भगवान व्यापा . . ७५ २ ५ १.१ . ६ 10 १९ ५ १०

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