Book Title: Mahavira Bhagavana
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Digambar Jain Pustakalay

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Page 284
________________ भगवान महावार.। ।। गिरनारंजीमें नो अशोकका शिलालेख है उससे सच्चा दयाधर्म टपक रहा है। राजा अशोकका राज्य कितना विस्तृत था सो प्रगट है । ग्रीसमें भी उसकी आज्ञा प्रचलित थी। पवित्र अहिंसा धर्मका प्रचार अशोकने सुदूर देशोंमें किया था । जैनधर्मके सान्तवनादायक मिष्ट उपदेश संबको बताए थे। अवशेषमें सम्राट खीरबैलका वर्णन ईस प्रकार हैं.. उडीसा प्रान्तके खण्डगिरी' पर्वतपर, जो कि. कटकके पास भुवनेश्वरसे ४-६ मीलकी दूरीपर है 'हाथीगुफा' नामका एक प्राचीन सुरम्य स्थान है, जहां एक प्राचीन शिलालेख पुराने गौरवको अपनी गोंदमें लिए हुए है। लेखकी लिपि उतरीबाली है, जिसका समय बल्हरसाहबके मतानुसार ईसासे प्रायः १६० वर्ष पूर्व है। इसी लेखसे सम्राट् खारवेलके जीवनपर प्रकाश पड़ता है। मि० के० पी० जेसवाले प्रभृत विद्वानोने इसका अध्ययन करके उल्या प्रकट किया है। उससे जाना जाता है कि राजा अशोकेके पीछे करिङ्ग देशमे राजा खारवेल बडे प्रतापी जैन संबाट हुए । राना खारवेलका जन्म सन् ई०से १९७ वर्ष पूर्व अर्थात राजा अशोककी मृत्युके ४० वर्ष पीछे हुमा था। इसके पिताका नाम राजा चेत-- राज था। १३ वें वर्षमें उन्होंने युवराजपद पाया । २९ वें वर्ष में यह राजा हुए। उस समय कलिङ्ग देशमें जैनधर्मका पूर्ण प्रचार था। राज्यपरिवार भी इसी मतका अनुयायी था। तोशाली इनकी राज्यधानी थी निसे इन्होने पुननिर्माण कराई। अनेक उद्यान ठीक कराए । कके लिए नहरें खुदाई। इसके प्रजाहितैपी कार्यसे इसकी ३५ लाख प्रना बहुत प्रसन्न हुई। मूर्षिक राज्य जो करि

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