Book Title: Mahavira Bhagavana
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Digambar Jain Pustakalay

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Page 297
________________ जीवनसे प्राप्त प्रगट शिक्षाएँ। २६९ निन्होंने मोह मायाको और मन और मानको जीत लिया था। यह " तीर्थकर " हैं। इनमें बनावट नही थी, दिखावट नहीं थी, जो बात थी साफ साफ थी। ये (२४ तीर्थकर ) वहलासानी (अनौपम) शखसीयतें हो गुज़री हैं, जिनको जिसमानी कमजोरियों व ऐबोंके छिपानेके लिए किसी जाहिरी पोशाकूकी जरूरत लाहक, नहीं हुई; क्योंकि उन्होंने तप करके, जप करके, योगका साधन करके अपने आपको मुकम्मिल और पूर्ण बना लिया था।" इसलिए: " जो अपनो हित चाहत है निय, तौ यह सीख हिये अवधारो। कर्मन भाव तजो सब ही निन, आतमको अनुभौरस गारों ॥ वीर निनचंदसों नेह करो नित, आनंदकंद दशा विस्तारो। मूढ़ लखै नहिं गूढ कथा यह, 'गोकुल गांवको पैडोहि न्यारो ॥" -वन्दे वीरम्-इति-शुभम् - - % E - -

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